‘‘भारत निरोगी यात्रा’’ का दूसरा पड़ाव राजस्थान। राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी निरोगी लोगों की कमी नहीं है। लेकिन जयपुर में बिमारों की कोई कमी नहीं है। यहां के लोगों में कैनसर से लेकर मधुमेह अधिक है। चर्मरोग के रोगियों की भी कोई कमी नहीं है। महिलाओं में बांझपन और प्रजनणतंत्र के रोग भी बहुतायत हैंं।
राजस्थान की तुलना यदि केरल से की जाए तो स्पष्ट शब्दों में कहा जा सकता है कि राजस्थान कम शाक्षर होकर भी स्वास्थ्य के क्षेत्र में केरल से बहुत बेहतर है। राजस्थान यह तथ्य को प्रमाणित करता है कि स्वूâली शिक्षा (मेकॉले शिक्षा) के कारण लोग ज्यादा बिमार हो रहे हैं। आने वाले दिनों में यह आंकड़ा भी आ जाएगा कि जो राज्य स्वूâली शिक्षा में आगे हैं वे राज्य उतने अधिक बिमार हैं।
‘‘भारत निरोगी यात्रा’’ – राजस्थान के पड़ाव पर एक समाचार ने हमें चौंका दिया – राजस्थान की वसुंधरामाई सरकार चाहती है कि राजस्थान के गांव – गांव में ‘हेल्थ ए टी एम’ लगे। इसकी प्रयोगिक शुरुआत झालावाड़ के कनवाड़ा पी एस सी पर हो गई है। वहां ग्रामीणों को डाक्टर के स्थान पर एक खाली कुर्सी मिलती है जिस पर बैठकर ग्रामीण कम्प्यूटर के माध्यम से अपनी जांच करा सकते हैं और ऑनलाईन अपनी बिमारी की दवाई पूछ सकते हैं। उस दवाई को वही पर लगे ए टी एम मशीन में अपनी स्वास्थ्य कार्ड डालकर ए टी एम के अंदर रखे ८० प्रकार की नि:शुल्क दवाओं में से अपनी जरुरत की दवा ले सकते हैं। प्रश्न उठता है कि क्या मनुष्य में होने वाले रोग सीमित हैं ? क्योंकि कम्प्यूटर केवल प्रोग्राम किए हुए बिमारी की पहचान कर ही उसके उपयुक्त एण्टीबायोटिक लेने की सलाह दे सकता है।
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान कहता है कि मनुष्य शरीर में कुल २८ प्रकार के तत्व हैं। जबकि वेदों में ३३ की गणना है। कोई बात नहीं, यदि २८ भी मान लें तो विज्ञान कहता है कि इन्हीं तत्वों की आई कमी या उसकी अधिकता के कारण ही कोई बिमारी पनपती है। यानि २८ अंकों के विविध गणकों में होने वाली कमी या अधिकता से ही बिमारियां होती है। तो २८ अंकों के कितने गणक हो सकते हैं ? इसे यदि गणित के माध्यम से देखा जाए तो केवल ९ अंकों के गणक ही अनंत होते हैं। अर्थात मनुष्य शरीर में अतंत प्रकार की बिमारियां हो सकती है। ऐसे में यह निश्चित है कि कम्प्यूटर गलती करेगा और लोगों को गलत एण्टीबायोटिक लेने की सलाह देगा, जिसका परिणाम राजस्थान के लोग भुगतेंगे।
यह एलोपैथी की दवा बनाने और बेचने वाली वंâपनियों की साजिश लगती है। क्योंकि इसमें राजस्थान की सरकार दवाओं को खरीदकर जनता को मुफ्त में देने वाली है। वंâपनियां सरकारों से अपने दाम पर दवाइयों को खरीदवाएगी। जिसमें घोटाले होने की भी पूरी संभावना है। कोई भी अनपढ़ और गंवार व्यक्ति भी इस सत्य को समझ सकता है कि – मरीज का रिस्ता यदि डॉक्टर के साथ सहज हो तभी मरीज अपनी अपनी दर्द को डॉक्टर के सामने खुलकर रख सकता है। लेकिन इतनी सी बात राजस्थान की मुख्यमंत्राणी श्रीमती वसुंधरामाई को वैâसे समझ में नहीं आई?
सरकार तर्वâ दे रही है कि राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टर नहीं पहुंच पाते हैं जिस कारण से ऐसे उपाय किए जा रहे हैं। प्रश्न उठता है कि सरकारी डॉक्टर क्यों नहीं ग्रामीण क्षेत्रों में जा रहे हैं ? ऐसे में उन्हें नौकरी पर क्यों रखी जा रही है ? इस पर भी सरकार का तर्वâ है कि डॉक्टरों की कमी है। प्रश्न उठता है कि डॉक्टरों की कमी क्यों है ? यहां पर भारत सरकार का उत्तर है कि मेडिकल कॉलेजों की कमी है। फिर वही प्रश्न, मेडिकल कॉलेजों की क्यों कमी है ? क्योंकि मेडिकल कॉलेजों को चलाने के लिए सरकार के पैसे नहीं हैं।
इसका मूल कारण यह है कि मेडिकल की पढ़ाई को जान-बूझ कर इतना कलिष्ठ और महंगा बना दिया गया है कि एक डॉक्टर तैयार करने में सरकार को या फिर स्वसंचालित मेडिकल कॉलेजों को करोड़ रुपये लगते हैं। अब इस देश में कितने परिवार ऐसे हैं जो अपने बच्चे को डॉक्टर बनाने में करोड़ रुपये लगा सकते हैं और सरकार कितने बच्चों पर करोड़ रुपये खर्च कर सकती है ? सरकारें हिम्मत नहीं जुटा पर रही हैं कि मेडिकल की पढ़ाई को सामान्य जनता के लिए खोला जाए। जहां पर भारत के मध्यवर्गीय परिवार भी अपने बच्चे को स्वसंचालित मेडिकल संस्थानों में डॉक्टर बनाने का सपना पूरा कर सवेंâ।
पूरा यूरोप और अमरीका महादेश एण्टीबायोटिक के दुष्परिणाम से पीड़ित है। यही कारण है कि वहां के डॉक्टरों ने एण्टीबायोटिक लिखना बंद कर दिया है। उन देशों के डॉक्टर बहुत कम एण्टीबायोटिक लिखते हैं। यदि किसी आपातकाल में लिखे भी जाते हैं तो मरीज को उसका दुष्परिणाम पहले ही बता दिया जाता है। कोई डॉक्टर यदि दुष्परिणाम बताए बिना ही मरीज को एण्टीबायोटिक लिख दिया तो उस पर मुकदमा हो सकता है और बहुत बड़ी रकम हर्जाने के रूप में देना पड़ सकता है। जिस डर से वहां के डॉक्टर अब एण्टीबायोटिक नहीं के बराबर लिखते हैं।
भारत के बारे में भारत के वर्तमान नेता यह कहते नहीं थक रहे हैं कि ‘‘भारत बड़ी तेजी के साथ विकास कर रहा है’’। प्रश्न यही है कि राजस्थान के लोगों को ए टी एम से एण्टीबायोटिक खिलाना कौन सा विकास है ? जिस एण्टीबायोटिक से यूरोप और अमरीका अब बाहर निकलना चाहता है, हम उसी एण्टीबायोटिक से भारत के लोगों को वैâसे स्वास्थ रख सकते हैं ? जबकि भारत की जनता का निरोगी होना ही भारत का असली विकास है। हमारी सरकारें प्रति वर्ष ६० हजार करोड़ रूपये स्वास्थ्य के नाम पर खर्च करती हैं, प्रश्न उठता है कि इतने पैसों से भारत की कितनी जनता को स्वास्थ्य लाभ मिलता है ? सरकारें ही कहती हैं कि मात्र १३ – १४ प्रतिशत को ही इसका लाभ मिलता है। फिर यदि भारत की १०० फिसदी जनता को सरकारें स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराना चाहे तो कितना धन लगेगा ? और इतना धन सरकारें लाएगी कहां से ?
इसलिए, वसुंधरामाई ! उठो, जागो और पहचानो अपने भारत की चिकित्सा विद्या को। पहचानों ; राजस्थान की गईया के अमृतमय गव्यों को।