भारत में सांस्कृतिक विनाश चाहता है विश्व माफिया
चेन्नै। जिसे हम विकास कह रहे हैं वह किस ओर जा रहा है इसका अनुमान कोई भारतीय लगाए तो उसके रोंगटे खड़े हो जाए। विश्व माफिया जिस प्रकार बैंकाक को विश्व का सबसे बड़ा वेश्यालय पर्यटन बना दिया। विकास के नाम पर महलें और राजमार्गों का ढांचा तो खड़ा किया गया लेकिन उन ढ़ांचों में होता क्या है ? राजमार्गों पर किसकी कारें दौड़ती है ? इन प्रश्नों के उत्तर बड़े कड़वे हैं। उन महलों में देह मसाज के नाम पर वेश्यावृत्ति के पर्यटन उद्योग चलता है और राजमार्गों पर किशोरी देह की तलाश में विदेशी पर्यटकों की कारें दौड़ती है।
विश्व माफिया द्वारा इसी तर्ज पर भारत के विकास को भी देखा जा रहा है और हम अपनी गाल पीटकर खुश हो रहे हैं कि विकास हो रहा है। अगर यही क्रम चलता रहा तो २०२० तक भारत में भी वेश्यावृत्ति के पर्यटन उद्योग शुरु हो जाएंगे और सरकारों को विदेशी पर्यटकों को लुभाने के लिए घर-घर में वेश्यावृत्ति की खुली छूट देनी पड़ेगी। जैसा आज बैंकाक में है। सरकार के पास विदेशी कर्ज चुकाने के लिए पैसे नहीं होंगे। विदेशी कर्ज और उसका व्याज फिर चक्रवृद्धि व्याज कहां से चुकेगा ? विश्व माफिया हमारी सरकारों को विवश करेगी कि पर्यटन से पैस जुटाओ और कम से कम प्रति वर्ष व्याज चुकाते रहो। उन दिनों कर्ज का व्याज चुकाने के लिए भी कर्ज देना बंद करेंगे ये विश्व माफिया के लोग।
इसका प्रत्यक्ष उदाहरण देखना है तो ग्रीस की स्थिति से सीख ली जा सकती है। इन दिनों ग्रीस वर्ष २००८ से भी बड़े आर्थिक संकट में पंâसा हुआ है। विश्व माफिया ने ग्रीस के लिए तीन साल की अवधि के लिए ८६ अरब डॉलर के बेल आउट के हिस्से के तौर पर, ७.१२ अरब डॉलर के आपात ऋण का भुगतान किया। यह ऋण सबसे बढ़कर इसलिए दिया गया ताकि उसी दिन ग्रीस, योरोपीय केंद्रीय बैंक की ४.२ अरब यूरो की देनदारी का व अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष की देनदारी का भी भुगतान कर सके। यह ऋण लेकर, ऋण चुकाने की ही मजबूरी का मामला नहीं है बल्कि जिनका ऋण चुकाना है, उन्हीं से ऋण लेकर, पहले का ऋण चुकाने का मामला है। परिणाम यह हुआ कि ठीक इसी दिन से अनेकानेक उत्पादों व सेवाओं पर कर की दरें १३ से बढ़ाकर २३ फीसद की गई। कहना न होगा कि कर चुकाने के लिए कर लेने का यह दुष्चक्र, ग्रीस की जनता पर सिर्फ बढ़ता हुआ बोझ थोपा गया। पश्चिमी सभ्यता का पालना रहे ग्रीस का दुर्भाग्य यह भी है कि इस दुश्चक्र से निकलने के लिए कर्ज पर कर्ज लेकर खड़ा किया गया ढांचा अब कोई काम का नहीं रहा। गर्दन पर विश्व माफिया की कटार लटकी है लेकिन वे ग्रीस को मारेंगे नहीं, गुलाम की हत्या नहीं की जाती, बल्कि उसके खून का चूसने की आदत लगी है उन्हें। ऐसे देशों को कर्ज के व्याज को चुकाने के लिए अपसंस्कृति के सारे अनैतिक कर्म करने पड़ते हैं। अंतत: पीसती जनता है और सुख भोगते नेता हैं, जिन्होंने कर्ज लिया।
भारत की जनता पर लदा हुआ कर्ज, कर्ज का व्याज और उसकी देनदारी पर आर्थिक दृष्टि डालें तो यही प्रतीत होता है कि आज जो हालात ग्रीस की है वह कल भारत की भी हो सकती है। ग्रीस इस संकट से बाहर निकलने के लिए क्या करेगा यह तो आने वाले समय में ही पता चलेगा लेकिन भारत निश्चित रूप से बैंकाक की राह पर चलेगा। क्योंकि विश्व के माफिया देशों की चाह भारत की किशोरी देह है। इसके सैंकड़ो प्रमाण अंतरजाल में देखे जा सकते हैं। यह एक अलग विषय है कि माफिया राष्ट्रों को भारत की किशोरी देह की चाहत क्यों है ?
ग्रीस के दिवालिया होने की घटना इस प्रकार है – आर्थिक संकट के बाद २० जुलाई को ग्रीस में बैंकों के खुलने के साथ, जीवन के सामान्य पटरी पर लौट आने की शुरुआत मानी जा सकती है। जून के आखिर में फूटे ऋण संकट से मची बैंकों से पैसा-निकालने की अफरा-तफरी के बीच, २९ जून से बैंक बंद कर दिए गए थे। उसके बाद से बैंकों से एक दिन में सिर्फ ६० यूरो निकालने की इजाजत थी। बेशक, तीन हफ्ते बाद भी पाबंदियां बनी हुई थीं, फिर भी रोजाना निकाली जा सकने वाली राशि की अधिकतम सीमा में ढील देने की शुरुआत हो चुकी थी। यह इसलिए संभव हुआ था कि ग्रीस के लिए तीन साल की अवधि के लिए ८६ अरब डॉलर के बेल आउट के हिस्से के तौर पर, ७.१२ अरब डॉलर के आपात ऋण का भुगतान शुरू हो चुका था।
२००८ के विश्व वित्तीय संकट से निपटने की कोशिश में, शेष पूंजीवादी दुनिया की तरह, ग्रीस में भी सरकार ने ऋण लेकर, बैंकों समेत वित्तीय संस्थाओं को बचाने के लिए मदद दी थी। यूरोपीय यूनियन तथा यूरोजोन के हिस्से के तौर पर ग्रीस चूंकि घाटे की वित्त व्यवस्था की बहुत नीची सीमा से बंधा था, इस घाटे की भरपाई उसे ‘‘त्रोइका’ के माध्यम से ऋण लेने के जरिए करनी पड़ी और इसके साथ शुरू हुआ बेल आउट पैकेजों और उनके साथ जुड़ी ऑस्टेरिटी यानी जनता को ज्यादा से ज्यादा निचोड़कर ऋण चुकाने के साधन बचाने का सिलसिला। अचरज नहीं कि पिछले कई वर्ष से आर्थिक संकट की मार झेल रहे समूचे योरोप में ही, मेहनतकशों, पेंशनरों व आम जनता के जीवन स्तर पर इन हमलों का कड़ा विरोध हो रहा था।
इसी मंथन के बीच से, परंपरागत कम्युनिस्ट वामपंथ के अलावा ग्रीस में सिरिजा के नाम से नया वामपंथी मंच उभरा। इसकी मूल प्रतिज्ञा तो ऑस्टेरिटी की मार से जनता को बचाने की थी, लेकिन वह कम्युनिस्ट वामपंथ के विपरीत, योरोपीय यूनियन व यूरोजोन के दायरे में ही रहकर, ग्रीस की जनता को बचाने का वादा करता था। इस वादे के आधार पर ही साल के शुरू में जनता ने सिरिजा के हाथ में सत्ता सौंपी। वादे के अनुरूप सिरिजा ने यूरोजोन की नीतियों के दायरे में, जो वास्तव में विश्व वित्तीय पूंजी द्वारा नियंत्रित नीतियां ही हैं, देश के ऋण संकट के हल के लिए त्रोइका से ऐसा नया बेल आउट पैकेज लाने का काफी जोर लगाया था, जो ऑस्टेरिटी की मार खत्म न भी करे, तो कम से कम हल्का जरूर करे। लेकिन, त्रोइका को यह मंजूर न था और ग्रीस को बेल आउट पैकेज के लिए ऑस्टेरिटी की पहले से कड़ी शर्ते स्वीकार करने का अल्टीमेटम दे दिया गया।
इसी पृष्ठभूमि में प्रधानमंत्री अलेक्सिस सिप्रास ने अल्टीमेटम ठुकराते हुए, शर्ते को स्वीकार करने न करने पर जनमत संग्रह की घोषणा की थी। इसके बाद जून के आखिर में ग्रीस विकसित दुनिया का संभवत: पहला देश बना गया, जो अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष का डिफाल्टर हो गया। ५ जुलाई को हुए जनमत संग्रह में बैंकों के बंद होने आदि की कठिनाइयां झेलते हुए भी, पूरे ६१.५ फीसद ग्रीसवासियों ने बेल आउट के साथ जोड़ी जा रही शर्तों के खिलाफ फैसला सुनाया। लेकिन, उसके बाद जो कुछ हुआ, उसे ग्रीक त्रासदियों की परंपरा का नया अध्याय ही कहा जा सकता है।
विश्व वित्तीय पूंजी के हितों से बंधे त्रोइका ने ग्रीस की जनता के जनादेश को ठुकरा ही नहीं दिया, अपने आदेश की अवहेलना करने की सजा के तौर पर, बेल आउट के लिए अपनी शर्तों को पहले प्रस्तावित शर्तों के मुकाबले और सख्त कर दिया। अब ऑस्टेरिटी की मार में ३ अरब डॉलर का इजाफा कर दिया गया। दूसरी ओर, सिप्रास सरकार ने जिसने किसी विकल्प पर विचार तक करने की जहमत जरूरी नहीं समझी, त्रोइका के कड़े रुख के सामने यूरोजोन से ग्रीस की विदाई की संभावना मात्र देखकर, हथियार डाल दिए।
इस तरह, ऑस्टेरिटी की मार से बचने के लिए संघर्ष कर रही और दो-टूक संकल्प जता चुकी ग्रीस की जनता को, त्रोइका के आगे डाल दिया गया। सिरिजा विभाजित हो गयी, पर सिप्रास सरकार ने त्रोइका के अल्टीमेटम पर, १५ जुलाई को करों तथा कटौतियों में भारी बढ़ोतरी से लेकर, निजीकरण तथा ५० अरब यूरो की राष्ट्रीय संपत्तियां बेचने तक के कानूनों पर संसद से मोहर लगवा ली ताकि तीसरा बेल आउट पैकेज शुरू हो सके!
इसके दो-तीन सबक खास हैं, जो हमारे देश के लिए भी हैं। १) विश्व वित्तीय पूंजी के शिकंजे में फंसने के बाद, उसकी जकड़ ढीली नहीं की जा सकती है। हां ! फंदा ही काट दिया जाए, तो बात दूसरी है। २) ब्रिक्स बैंक जैसी पहलें इसीलिए महत्वपूर्ण हैं कि वे कुछ राहत देती हैं। याद रहे कि विश्व माफिया राष्ट्र की नजरों में अपने फायदे के सामने जनतंत्र व जनादेश की एक पैसे की कीमत नहीं है। अंत में विश्व माफिया राष्ट्रों को निर्द्वंद राज के लिए किसी वास्तविक विकल्प की चुनौती नहीं होगी, तो यह आत्मघाती हिंसक विद्रोह ही पैदा करेगा। जैसा कि भारतीय परिवेश में स्पष्ट दिखलाई दे रहा है।.