भारत में सामाजिक व्यवस्था पर किए गए अध्ययन के अनुसार भारत में हर तीन में से एक किशोरी सार्वजनिक स्थानों पर यौन उत्पीड़न को लेकर चिंतित रहती है जबकि पांच में से एक किशोरी बलात्कार सहित अन्य शारीरिक हमलों को लेकर डर के साए में जीती है।
यह सर्वेक्षण ‘सेव द चिल्ड्रेन’ नामक संस्था द्वारा कराया गया है, जिसे मंगलवार को जारी किया गया। संस्था ने यह आंकड़े सव्रेक्षण के माध्यम से जुटाए हैं और यह सार्वजनिक स्थानों पर लड़कियों की सुरक्षा को लेकर धारणा पर आधारित है।
रिपोर्ट के अनुसार शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों की दो तिहाई लड़कियों ने कहा कि सार्वजनिक स्थानों पर उत्पीड़न की स्थिति में अपनी मां पर भरोसा करेंगी। पांच में से करीब दो लड़कियों ने कहा कि अगर उनके अभिभावकों को सार्वजनिक स्थल पर उत्पीड़न की किसी घटना का पता चलेगा तो वे उनके घर से बाहर निकलने पर रोक टोक करेंगे। 25 फीसद लड़कियों को लगता है कि उनका शारीरिक शोषण और बालात्कार भी हो सकता है।
रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि 40 प्रतिशत लड़कियों को लगता है कि पुलिस उन्हें गंभीरता से नहीं लेगी या उल्टा उन पर ही आरोप लगाया जाएगा। इस अध्ययन में करीब 4000 किशोर और किशोरियों तथा उनके 800 अभिभावकों को शामिल किया गया।
यह सर्वेक्षण छह राज्यों के 30 शहरों और 84 गांवों में कराया गया। सव्रेक्षण में दिल्ली – एनसीआर, महाराष्ट्र, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, असम और मध्य प्रदेश को शामिल किया गया।
यह सर्वेक्षण बताता है की – भारत की सामाजिक व्यवस्थता कितनी चरमरा गई है की भारत की बेटियाँ भारत में ही सुरक्षित नहीं हैं। अंगरेजों के पूर्व का भारत और उस समय की सामाजिक व्यवस्थता का इतिहास पढ़ें तो स्पष्ट है की गाँव के लोग आपस में इतना घूल – मिल कर रहते थे कि गाँव के किसी भी परिवार की बेटी गाँव कि बेटी होती थी और गाँव के सभी बेटे उसे गाँव की बहन की तरह मानते। सम्मान देते। अंगरेजों के जाने के बाद तक ऐसी व्यवस्थता बहुतेरे गाँव में थी। आज भी वनवासियों के गाँव में यही सामाजिक व्यवस्थता चल रही है। यही कारण है कि वनवासियों के गाँव में कभी भी बलात्कार के समाचार नहीं मिलते। यह सत्यापित करता है कि वनवासी भले ही आर्थिक दृष्टि से कमजोर हैं लेकिन सामाजिक दृष्टि से उन्नत हैं।
जहां – जहां पर आर्थिक उन्नति ऊंची दिखती है, वहीं – वहीं बलात्कार जैसे मामले भी ज्यादा होते हैं। दिल्ली और मुंबई तो इसका हब जैसा हो गया है। यह सोचना तो पड़ेगा कि आर्थिक उन्नति के साथ मनुष्य शैतान कैसे हो रहा है ? अर्थात आर्थिक उन्नति के साथ हूँ हम समाजिकता को खो रहे हैं। फिर ऐसी आर्थिक उन्नति किस काम का जो मनुष्य को शैतान बना कर रख दे। अत: हम जिस आर्थिक उन्नति के रास्ते पर चल रहे हैं उस पर पुन: विचार करना होगा। आर्थिक प्रगति से महिलाओं को मिलने वाले अवसर बढ़ते हैं। हालांकि व्यक्तिगत सुरक्षा की चिंता इस प्रगति में बाधा बनती है। ऐसे अध्ययन बताते हैं कि इस पर जमीनी स्तर पर कार्य होना चाहिए।