राष्ट्र की सीमा सुरक्षा के क्षेत्र में पहले से ही भारत की बेटियों ने अपना स्थान बना लिया है। राष्ट्र पर मर मिटने की जजबात को पूरा कर रही हैं। सीमा सुरक्षा में बेटियों ने अपनी बलीदानी भी दी है। हवा में हवा से मार करने के लिए बेटियों को वायु सेना में भी सामिल किया जा सकता है।
अभी उन्हें लड़ाकु विमानों पर सवार होने की अनुमती नहीं मिली है लेकिन वह समय भी दूर नहीं जब वे लड़ाकु विमानों पर सवार होकर दुश्मनों को पस्त करेंगी। इतना ही नहीं अब तो समुद्री सीमा की रखवाली भी सौंपी गई है। महिलाओं के बढ़ते कदम का यह साक्षात् नमूना है। भारत की बेटियां तो सदा से ही राष्ट्र रक्षा के लिए पराक्रम करती रही हैं। जब – जब राष्ट्र की स्थिति बिगड़ी है, इन्होंने खड़ग उठाया है। यही कारण है कि वायुसेना में महिलाओं को सामिल करने के बाद अब नौसेना में उन्हें महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंपे जाने की तैयारी शुरू हो गई है।
नौसेना ने रक्षा मंत्रालय को इस आशय का प्रस्ताव भेजा है। रक्षामंत्री ने नौसेना के प्रस्ताव को उचित करार देते हुए जल्दी ही इस मामले में सकारात्मक फैसला करने का संकेत दिया है। हालांकि नौसेना ने महिलाओं को युद्धपोत चलाने की इजाजत देने से फिलहाल इनकार किया है, पर उन्हें समुद्री टोही यान चलाने का मौका दिया जाएगा। इससे महिला सैनिकों का मनोबल चौगुणा हुआ है।
कुछ दिनों पहले दिल्ली उच्च न्यायालय ने सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन देने का फैसला सुनाया था। सेना में बड़ी संख्या में महिलाएं तैनात हैं, पर उन्हें युद्धक्षेत्र में जाने की इजाजत इसलिए नहीं दी जाती कि वे स्वभाव से कोमल होती हैं और शारीरिक रूप से पुरुषों जितनी मजबूत नहीं मानी जातीं। खासकर लड़ाकू विमान या पोत चलाने के लिए जिस तरह की फुर्ती, फैसले करने में तेजी और खतरों का सामना करने के हौसले की जरूरत होती है, वह महिलाओं में पुरुषों के मुकाबले कम आंकी जाती रही है। लेकिन अब समय बदला है। भारत ने महिलाओं में दूर्गा, चण्डी और काली के रूप को देखा है। झांसी की राणी लक्ष्मीबाई और राणी चिनम्मा के शौर्य को भी देखा है। घर की सुरक्षा का विषय भला उनसे ज्यादा और कौन समझ सकता है ?
महिलाओं को जैसे ही मौका दिया गया उन्होंने धारणाओं को कई तरह से तोड़ा है। वे युद्धक यानों के अलावा परिवहन से जुड़े दूसरे यानों का बखूबी संचालन करती हैं। यों भी सेना में भर्ती होने वाले हर अधिकारी और सिपाही की इच्छा रहती है कि वह युद्ध के दौरान अपनी सेवाएं दे। खासकर युद्धक यानों को चलाने का रोमांच हर प्रशिक्षित यान चालक सैनिक को होता है।
इसके प्रशिक्षण के दौरान वही तैयारियां महिला पायलटों से भी कराई जाती हैं, जो पुरुष पायलटों से कराई जाती हैं। इसलिए प्रशिक्षण के बाद महिलाओं को युद्धक यान संचालन का मौका न दिया जाना एक तरह से उनके साथ भेदभाव ही लगता है लेकिन समय के साथ परिवर्तन आ रहा है और महिलाओं के लिए सभी क्षेत्र खोले जा रहे हैं।
वायुसेना में महिलाओं को लड़ाकू विमान न चलाने देने के पीछे एक भय यह भी काम करता रहा है कि अगर महिला पायलट दुश्मन देश के गिरफ्त में आ गईं तो उनके साथ होने वाले अश्लील व्यवहार से देश शर्मसार हो सकता है। मगर युद्ध के समय कई ऐसे भी काम होते हैं, जिनमें दुश्मन देश की गिरफ्त में आने का खतरा नहीं होता, उन्हें महिला पायलट बखूबी निभा सकती हैं। नौसेना भी महिला पायलटों के लिए ऐसी जिम्मेदारी तय कर सकती है।
प्रश्न यही उठता है कि जब महिलाएं अंतरिक्ष यान में उड़ान भर कर तमाम तकलीफें सहन कर सकती हैं और जान का जोखिम उठाते हुए कठिन शोध कर सकती हैं तो लड़ाकू यान का संचालन उनके लिए क्यों कठिन माना जाना चाहिए ?
इस बात के कई उदाहरण दिए जा सकते हैं कि जब भी जरूरत पड़ी है, महिलाओं ने स्थितियों के मुताबिक खुद को ढालते हुए बेहतर कौशल का प्रदर्शन किया है। जरुरत पड़े तो तेजी के साथ फैसले कर सकने की क्षमता को भी सिद्ध किया है।