भारत नदियों, झीलों, पोखर-तालाबों से समृद्ध गावों का देश था। 1947 के बाद जब अँग्रेजी सत्ता उन भारतीयों के हांथ में आई जो अँग्रेजी सत्ता को ही अपना आदर्श मानते थे तब से भारत की नदियों को बेचने का अपकर्म, पोखर-तालाबों को पाट कर शहर – उद्योग बसाने का अपकार्य शुरू हुआ। आज के भारत की स्थिति यह है की तीन चोथाई नदियां सूख चुकी है। कुछ में तो केवल वर्षा ऋतु में ही जल का प्रवाह रहता है। शेष समय शीतलता छोड़ सूर्य के ताप में अग्नि उगलती है।
कुछ ही नदियां सदानीरा हैं, जिनमें हमेशा पानी रहता है, गंगा-यमुना जैसी निदयां सदानीरा हैं, दक्षिण में कृष्ण, कावेरी और पंपा सदानीरा हैं। थोड़ी-बहुत घट-बढ़ के साथ उनमें पानी का ऐसा अकाल नहीं पड़ता कि लोग त्राहि-त्राहि करने लगें। लेकिन अब ये हालात बदलते दिख रहे हैं। इधर यमुना सूख रही है, जिससे दिल्ली और हरियाणा में जल संकट पैदा हो रहा है। उधर, गंगा का पानी भी तट छोड़ गया है। कृष्ण, कावेरी के जल पर भी ग्रहण लग चुका है। पंपा भी अब कई स्थान पर उफान पर नहीं बहती।
यमुना का जलस्तर घट रहा है जिससे दिल्ली में जल संकट गहरा गया है। उदाहरण – 1) यमुना का जलस्तर घटकर मात्र 1348 क्यूसेक रह गया, जिसके चलते उत्तर प्रदेश को पानी की सप्लाई बंद करनी पड़ी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश की वजह से दिल्ली को 352 क्यूसेक पानी की सप्लाई यमुना से की जा रही है और दिल्ली इसकी मात्रा लगातार बढ़ाने की मांग करता रहा है। पर समस्या यह है कि जिस हरियाणा से उसे यमुना का पानी मिलना चाहिए, वह खुद संकट में है। यमुना में पानी की कमी के चलते हरियाणा में सभी 8 हाइडल प्रोजेक्ट यूनिटें बंद करनी पड़ी है। हरियाणा के कई जिलों की खेतीबाड़ी भी इससे प्रभावित हो रही है और किसानों को अपनी फसल बचाने के लाले पड़ रहे हैं।
मोक्षदायिनी गंगा का भी ऐसा ही बुरा हाल है। हाल ही में केंद्रीय जल आयोग की बनारस इकाई ने गंगा का जलस्तर 58.07 मीटर दर्ज किया जो वर्ष 2017 में 29 जून को दर्ज किए गए न्यूनतम जलस्तर से 20 सेंटीमीटर कम है।
दक्षिण का त्रिवेणी वलर – चेईयर – वेगवती भी अपने संगम पर सूख चुकी है। पलियशिवरम मे अब जल नहीं है। यहीं से चेन्नै मेट्रो जो पेय जल की आपूर्ति होती है। यही हाल रहा तो लोगों के सामने प्यास से मरने के हालात बन जाएंगे। प्रश्न है कि आखिर गंगा – यमुना – कृष्ण – कावेरी – पंपा – पालर – चेईयर – वेगवाती का पानी कहां जा रहा है?
गर्मिंयों में जब पर्वतों की बर्फ पिघलती है तो हिमालय से फूटने वाली गंगा – यमुना आदि नदियों का जलस्तर सर्दियों की तुलना में बढ़ जाता है। लेकिन अब टिहरी जैसे विशालकाय बांधों में यह पानी रोका जाने लगा है ताकि उससे बिजली बनाई जा सके और किसी आपातकालीन जरूरत के लिए उसे सहेजा जा सके। यह पानी मानसून आने पर ही छोड़ा जाता है। ऐसे में गर्मिंयों में ये सदानीरा नदियां भी अब सूखी नजर आने लगी हैं।
पानी की बर्बादी भी एक मामला है। महाराष्ट्र में 2013 में क्रिकेट के आईपीएल के आयोजन के वक्त क्रिकेट मैदानों को हराभरा रखने के लिए लाखों लीटर पानी के दुरुपयोग का मुद्दा उठा था, जो इस साल भी चेन्नै को इसके मैचों के आयोजन से दूर करने की अहम वजह बन गया। भविष्य में ऐसे संकट न हों, इसके लिए जरूरी है कि देश के हर गांव और शहर के हर घर में पानी के संरक्षण के लिए वहां की परिस्थितियों के अनुसार जल संग्रहण का काम होना चाहिए।
भूमिगत जल को वर्षा जल से रिचार्ज करने की जरूरत है ताकि नदियों पर निर्भरता घटे। पानी तत्काल बहने से रोका जाए और उसे प्राकृतिक जल चक्र से जोड़ा जा सके। तालाबों व कुओं को वर्षा जल से जीवित करने और उन्हें लगातार रिचार्ज करने रहने की भी जरूरत है। ऐसे कई छोटे – छोटे प्रयासों से हम जल संतुलन को बना कर रख सकते हैं।