त्रिपुरा का लाल किला ढह गया। अर्थात – वामपंथियों की सत्ता गई। पश्चिम बंगाल के बाद वामपंथियों की यह दूसरी लाल किला है जो उनके हांथ से गई। अब तो केवल केरल ही है जो उनकी इज्जत को बचा रखा है। और वहाँ भी उन्हें वहाँ की जनता कब सत्ता से बेदखल कर देगी, पता नहीं।
अत देश की चारों वामपंथी पार्टियों को अपने भविष्य के प्रति चिंतित सता रही है साथ ही सजग भी कर रही है। लेकिन प्रश्न है की क्या इससे उन विचारों मे परिवर्तन आ रहा है जिसकी नीव पर यह स्थापित हुआ था। आंकड़े कुछ ओर बोलते हैं।
गृह मंत्रालय के अनुसार चरम वामपंथी (नक्सलियों) का प्रभाव 10 राज्यों के 103 जिलों में है। इनमें से 30 जिले अति संवेदनशील श्रेणी में रखे गए हैं। ‘इंस्टीट्यूट फॉर कान्फलिक्ट मैनेजमेंट’ द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार सन 2005 से लेकर 2018 तक देश के 15 राज्यों में माओवादी या चरम वामपंथी हिंसा में 7763 लोग मारे जा चुके हैं। इनमें 3092 सिविलियन, 1952 सुरक्षा बलों के जवान एवं 2719 माओवादी उग्रवादी शामिल हैं। माओवादियों की 13 राज्यों में राज्य कमेटियां स्थापित हैं और इनके अलावा 2 स्पेशल एरिया कमेटियां और 3 स्पेशल जोनल कमेटियां भी कार्यरत हैं। गृह मंत्रालय के आकड़ों के अनुसार 1999 से लेकर 2016 तक माओवादी हिंसा की 26511 घटनाओं में 7615 नागरिक, 2585 सुरक्षा बलों के कार्मिक एवं 3019 नक्सली मारे जा चुके हैं।
प्रश्न यह है की यदि शोषित तबकों की आवाज उठाने वाले लोकतांत्रिक लोग (जो वामपंथी कहलाते हैं।) देश के राजनीतिक नक्शे से सम्पूर्ण मिट गये तो उस विचार धारा के लोग खून – खराबे वाला चरम वामपंथ की ओर ही झुकेंगे।
अतिवादी वामपंथी जिन कारणों से मुख्यधारा से अलग हुए थे, उनमें सबसे प्रमुख कारण कम्युनिस्ट पार्टियों का क्रांति का मार्ग किनारे कर लोकतांत्रिक मार्ग से सत्ता तक पहुंचना ही था। अंतरराष्ट्रीय कम्युनिस्ट बिरादरी के समक्ष संसदीय लोकतंत्र में भागीदारी का उदाहरण पेश करने और दुनिया की सबसे दीर्घजीवी लोकतांत्रिक कम्युनिस्ट सरकार चला कर कीर्तिमान स्थापित करने वाले भारतीय कम्युनिस्ट अब केवल एक राज्य केरल तक ही सिमट कर रह गए हैं।
सन् 1957 में केरल ने ईएमएस नम्बूदिरीपाद के नेतृत्व में दुनिया की पहली लोकतांत्रिक कम्युनिस्ट सरकार दी थी। लेकिन जिस तरह देश में चरम वामपंथ अपनी जड़ें जमा रहा है यह चिंता का विषय है।
जनता को अपनी पसंद की सरकार के लिए किसी भी राजनीतिक दल का चयन करने का लोकतांत्रिक अधिकार है। वामपंथी त्रिपुरा में 25 साल और पश्चिम बंगाल में लगभग 34 साल तक राज करने के बाद चुनाव हारे। भारत में जिस तरह राजनीति धर्म, जात – पात, क्षेत्र, भाषा और धनबल पर केंद्रित होती जा रही है, उससे वामपंथ के उठ खड़े होने की अब कोई संभावना नहीं बचती है।