भारत भूमि से गाय समूल नष्ट हो जाए, विश्व माफिया की इस सोच का सत्यापन उस समय हो जाता है जब भारत का पशु चिकित्सा विभाग ग्रीष्म ऋतु में गायों को एक अनजान परजीवी से बचाने में असहाय दिखता है।
इस वर्ष (अभी भी) भारत में कई लाख गायों की मृत्यु हो गई लेकिन इसके कारण का सत्यापण नहीं हो पा रहा है और सरकारें हाथ पर हाथ धर कर बैठी है। अभी भी इस संकट से मुक्ति का रास्ता नहीं निकल पाया है।
मकर संक्राति के बाद जैसे ही धूप तेज हुई भारत के पशु – पक्षी, जिनमें सबसे अधिक गाय अपनी प्यास बुझाने के लिए गांव के तालाब में जल पीने गए, ऐसा प्रत्येक वर्ष होता है। ग्रीष्म ऋतु में गांव के पशु – पक्षी तालाब में ही जल पीते हैं। लेकिन इस वर्ष तालाबों में जो जल संग्रहित है उसमें कई प्रकार के परजीवी हैं। इस जल का सेवन जिन – जिन जीवों ने किया उनमें से ज्यादातर मर गए। कुछ मर रहे हैं और कई मरने के कगार पर हैं।
इस सत्य की पुष्टि पशु चिकित्सा में लिप्त कुछ ईमानदार डॉक्टरों के बयान से होता है। मेरे गौशाला की भी कई गायें इसी कारण से मर गई जबकि उनकी चिकित्सा पर पूरी ताकत लगाने के बाद भी उन्हें बचाया जा सका। न ही पशु चिकित्सकों के हाथों से बच पाई। नाम प्रकाशित न करने की शर्त पर एक बड़े पशु चिकित्सा अधिकारी ने बताया कि इस वर्ष सभी स्थानों पर जो भी गाय तालाब का पानी पी रही है उस पर किसी भी प्रकार की औषधी काम नहीं कर रहा है। वह कमजोर होते – होते प्राण त्याग देती है। उस पर किसी भी प्रकार का आहार या फिर औषध नहीं कार्य करता। उन्होंने दबी जुबान से बताया कि संभावना दिखती है कि यह वर्षा ऋतु के साथ घुल कर आया हुआ कोई परजीवी (वायरस) है जिसे आकाश में ही छिड़का गया है।
तमिलनाडु के कांचीपुरम जिला के पशु चिकित्सकों ने तो साफ तौर पर उन गायों की चिकित्सा करने से मना कर दिया जो तालाबों में पानी पी है। वे कहते हैं कि चुंकि हम पशु डॉक्टर के पद पर कार्यरत हैं इसलिए औषध तो दे ही देंगे लेकिन ये गाय बच नहीं सकती। लगभग ऐसी ही स्थिति भारत के कई जिलों की रही है। एक अनुमान के अनुसार इस षड़यंत्र से भारत में लगभग ४ से ५ लाख गायें पिछले ५ महिनों में मरी है। अभी भी इस समस्या का समाधान पशु चिकित्सालयों के पास नहीं है।
इसमें गायों के बचने की संभावना भारी वर्षा के बाद ही संभव है। तालाबों में जमा जल में जो परजीवी है वह वर्षा जल के साथ तालाब से जब तक बाहर नहीं निकलता है तब तक गायों को तालाबों में जल नहीं पिलाना चाहिए। उनके लिए भूमि श्रोत से निकले जल ही पिलाना चाहिए। भूमि के पास विष और परजीवी को समाप्त करने की ताकत होती है। इसी कारण तालाब से रिस कर आया हुआ जल जो कुओं में जमा है उसमें कोई संकट नहीं है अथवा बोर के जल में भी कोई संकट नहीं है।
हमने गौर किया है कि हमारी गौशाला में उन्हीं गायों की मृत्यु हुई है जिन्होंने पास के तालाब में जल पिया था। लेकिन जो गाय चरने के लिए नहीं जाती है अथवा जो तालाब का जल नहीं पी है उन्हें कुछ भी नहीं हुआ। वे पूरी तरह से स्वस्थ्य हैं। जबकि जो गाएं बिमार हुई उन्हें कई गुणा ज्यादा पोषक तत्व और चारा दिए गए। फिर भी उनकी हालत नहीं सुधरी। कई गायों पर एलोपैथी दवा भी दिया गया लेकिन उसका भी कोई असर नहीं हुआ।
प्रश्न उठता है कि विश्व माफिया जिसके पास मेघों में भी जहर घोलने की ताकत है वह क्यों चाहता है कि भारत भूमि से गाय समूल नष्ट हो जाए ?
विश्व को पता है कि आज भारत ही एक ऐसा राष्ट्र है जिसके पास पशुधन अधिक है और आज भी भारत के लोग पशुओं के बल पर अपनी आजीविका चलाते हैं। अभी भी भारत में ३ करोड़ के आस – पास भारतीय नस्ल की गाय बची है। जिनका गोबर, गौमूत्र और दूध संसार की सबसे श्रेष्ठ औषध है। आज भी भारत में बैलगाड़ी के प्रचलन ने कई हजार करोड़ के डीजल और पेट्रोल की बचत कराता है। मनुष्य चिकित्सा की दृष्टि से पंचगव्य के चिकित्सा विज्ञान ने मनुष्य शरीर के सभी रोगों पर विजय कर दिखलाया है। विश्व माफियाओं को डर है कि यदि भारत में गाय बच गई तो उनका रासायनिक चिकित्सा (एंटिबायोटिक) का बाजार कभी भी ध्वस्त हो सकता है।
गायों को इस समस्या से बचाने के लिए पंचगव्य गुरुकुलम ऐसी औषध के निर्माण में लगा हुआ है जिसे ग्रीष्म ऋतु आने पर गायों को खिला देने से उनके शरीर में ऐसा कोई परजीवी जिंदा नहीं रह सकता। इस दिशा में काफी दूर तक सफलता मिल चुकी है।
प्रश्न उठता है कि इस संकट से वैâसे निपटें ? इसके लिए एक ही रास्ता है कि हम किसी भी कीमत पर गाय को बचा लें। यदि गाय बच गई तो लूटा हुआ भारत फिर से खड़ा हो सकता है।