स्थल पुराण
चेन्नई शहर से 63 किलोमीटर दक्षिण और पश्चिम के कोने पर, बैंगलोर राज्य मार्ग से 13 किलोमीटर दक्षिण और पडपै मुख्य मार्ग से आधा किलोमीटर उत्तर में कट्टावाक्कम गाँव स्थित है| इस गाँव के वास्तु पर नजर डालें तो यह भूमि पास की सभी ज़मीनों से ऊंचाई पर है| जल का प्रवाह पश्चिम से पूर्व की ओर है, भूतल जल प्रवाह भी पश्चिम से पूर्व की ओर ही है| वर्ष की अधिकांश महीनों में पंछिया हवा चलती है, अधिकांश मानसून पूर्व की ओर से आता है| कभी-कभी उत्तर और दक्षिण से भी मानसून आता है|
निकट स्थल
यहाँ से 5 किलोमीटर दक्षिण दिशा में पलीयशिवरम नाम की अतिपौराणिक पहाड़ी है जिस पर आज भी भगवान शिव एवं भगवान नरसिंह का मंदिर शोभायमान है| पलीयशिवरम की पहाड़ी में पायी जाने वाले लगभग सभी औषधीय पौधे गौशाला के लघु जंगल में प्राकृतिक रूप से विध्यमान है अतः इस संभावना को बल मिलता है की जिन ऋषियों ने पलीयशिवरम पर तपस्या की है उनका संबंध इस भूमि के साथ भी रहा होगा| इस भूमि पर जब कृषि के कार्य शुरू किए गए तब यह भूमि विषधरों(साँपों) की भूमि थी| धीरे-धीरे सफाई करते हुए कृषि और गौरक्षा का काम शुरू हुआ| 3 वर्षों के बाद ही वर्ष 2003 में इस भूमि पर एक विशाल विश्वरूप लक्ष्मीनरसिंहन मंदिर की स्थापना का प्रस्ताव आया अतः यह सृष्टि का स्पष्ट शुभ संकेत था गौमाता यहाँ सर्वप्रथम आई उनके स्थानों की सुरक्षा कई वर्षों तक नागों ने की और अंत में भगवान श्री नरसिंह स्वामी की स्थापना हुई|
मकर संक्रांति से लेकर आषाढ़ के महीने तक सूर्य प्रबल होता है एवं आषाढ़ से लेकर मकर संक्रांति तक छिटपुट वर्षा होती है| यह भी एक कारण है की इस भूमि पर कार्य करने के पूर्व प्रवेश द्वार के पास भगवान शिव की स्थापना अक्टूबर 1999 में की की गयी| इस शिव स्थान पर आज भी साक्षात नागदेव विराजते है| नागदेव ने कई बार भूमिरक्षकों एवं गौपालकों को असामाजिक तत्वों से बचाया| अक्सर देखा गया है की विकट परिस्थितियों में उन्होने प्रवेश द्वार पर खड़े होकर आपराधिक लोगों को अंदर आने से रोका है| जिन लोगों ने नागदेव के दर्शन किए है उनका कहना है की नागदेव की आयु 100 वर्ष से कम नहीं रही होगी क्योंकि उनके मस्तक पर जटा और मुँह में विशाल फन है, रंग काला और लंबाई 6 फीट के करीब होगी| जब वे बाहर निकलते है तो उनकी साँसों की फुफकार 100 फूट दूर तक सुनाई पढ़ती है| एक बार एक गौपालक को दूर से ही फुक मार दी तो वह हफ्तों तक ज्वर से पीड़ित रहा लेकिन अभी तक किसी व्यक्ति को हानी नहीं पहुंचाई है| आभास होता है की इस धरती के टुकड़े को गायों के लिए सुरक्षित रखने के लिए ही उनका जन्म और विराजना हुआ है| आज भी वहाँ स्थापित शिवलिंग प्रथम पूजी है|
इस भूमि के दक्षिण में 150 एकड़ का सरकारी जंगल है, उत्तर में बुदेरी एवं कट्टावाक्कम गाँव है| पश्चिम में वलाजाबाद से चुंगूवर चतिरम जाने वाली मुख्य मार्ग है और पूर्व में एक लंबा सरोवर है| सरोवर के मेड़ से उदित किरणें सरोवर के जल से परावर्तित होकर लालिमा बिखेर देती है| घने वृक्षों के बीच स्थित यह गौशाला 125 गायों के लिए रमणिक स्थल जैसा है|