हम वर्षों से कहते आ रहे हैं कि आज जिस विकास की बात की जा रही है वह वास्तव में विनाश है। विकाश को वेदों में स्पष्ट किया है कि जिससे पंच महाभूतों (पांच यौगिक तत्व-जिससे सौर्यमंडल निर्मित है) का विकास हो, उनका शुद्धिकरण हो, वहीं संसार का वास्तविक विकास है। इसी के ठीक उल्टे जिससे पंचमहाभूतों का विनाश या अशुद्धि हो, वह विनाश है। पंचमहाभूतों में १) मिट्टी, २) जल, ३) अग्नि, ४) वायु और ५) आकाश है।
आज जिसे हम विकास कह रहे हैं उससे इन पांच यौगिक तत्वों का विनाश हो रहा है। अत: यह कभी भी विकास की परिभाषा में ठीक नहीं बैठता। इसे अब संसार के कई देश मानने लगे हैं। पिछले दिनों ग्लोबल फुटप्रिंट नेटवर्क ने सर्वेक्षण के बाद इसे गंभीरता के साथ रखा कि आस्ट्रेलिया, अमेरिका, स्विटजरलैंड, दक्षिण कोरिया, रूस, जर्मनी, फांस, ब्रिटेन, जापान, इटली, स्पेन, चीन, ब्राजील आदि देशों के नागरिकों की जीवनशैली और पृथ्वी पर उपलब्ध संसाधनों के उपभोग के स्तर के हिसाब से जिंदगी व्यतीत करें तो बढ़ती आबादी की दृष्टि में हमें कई पृथ्वी की जरूरत पड़ेगी। इस सर्वेक्षण के पीछे का सच यही है कि उपरोक्त देशों की जीवन शैली को इतना ज्यादा भौतिक संसाधनों से जोड़ दिया गया है कि प्रति व्यक्ति जीवन जीने के लिए जितनी वायु की जरुरत है, इससे ५० गुणा अधिक वायु की खपत हो रही है। इसी प्रकार प्रति व्यक्ति जल की खपत २०० गुणा से भी अधिक हो रही है। अग्नि की खपत भी २५ गुणा से अधिक हो रही है। मिट्टी में भी अधिकाधिक रासायनों का उपयोग हो रहा है। जो मिट्टी की प्रकृति को बदल कर दुषित कर रहा है। अर्थात् मिट्टी का भी विनाश कर रहा है।
इस संदर्भ में भारत की ओर देखें तो स्पष्ट है कि अभी भी भारत की जीवन शैली उन देशों की तुलना में बहुत ठीक है। इसीलिए झूठे विकास के पथ पर भारत सबसे नीचे नम्बर पर है। अभी भी भारतीयों की जीवनशैली पर्यावरण और जलवायु के काफी अनुकूल है। फिर भी इस संदर्भ में इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि आज भारत की धरती भी विनाश की ओर बढ़ रही है। इसका अह्म कारण झूठे विकास की अंधी दौड़ में मानव का लगातार तेजी से बेतहाशा भागे चले जाना है।
यह वास्तव में विनाश का मार्ग है। इसी झूठे विकास के दुष्परिणाम के चलते पृथ्वी पर दिन-ब-दिन बोझ बढ़ता जा रहा है। इससे जलवायु परिवर्तन हुआ है। यह एक गंभीर समस्या है जो समूची दुनिया के लिए भीषण खतरा है। अत: हम सबका दायित्व बनता है कि पृथ्वी के उपर आए इस भीषण संकट से छूटकारा के उपाय निकाले जाएं।
हम अपने देश को ही लें ; विचारणीय यह है कि हमारे यहां पृथ्वी की चिंता किसे है? किसी भी राजनीतिक दल से इसकी उम्मीद नहीं है। क्योंकि यह मुद्दा उनके राजनीतिक एजेंडे में है ही नहीं। कारण पृथ्वी वोट बैंक नहीं है।
व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर उठकर सोचें तो पृथ्वी हमारे अस्तित्व का आधार है, जीवन का केंद्र है। वह आज जिस स्थिति में पहुंच गई है, उसे वहां पहुंचाने के लिए हम ही जिम्मेवार हैं। हमारे द्वारा किए गए पंचमहाभूतों के उपभोग के कारण ही ऐसा हुआ है। कोई यह नहीं सोचता कि पृथ्वी केवल उपभोग की वस्तु नहीं है। वह तो मानव जीवन के साथ-साथ लाखों वनस्पतियों और जीव-जंतुओं की आश्रयस्थली भी है। और इसी से इसकी प्रकृति भी संतुलित है।
वास्तविकता है कि हमने हर चीज के लिए, भले वह पानी, जमीन, जंगल या नदी हो, कोयला, बिजली या लोहा आदि प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने में कीर्तिमान बनाया है। बढ़ती आबादी का पानी, भोजन और अन्य प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग आज खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है।
‘ग्लोबल फुटप्रिंट नेटवर्क’ और ‘ग्लोबल फुटप्रिंट एकाउंट’ के अनुसार धरती पर एक साल में जितने प्राकृतिक संसाधनों का उत्पादन हो रहा है उसे मात्र सात महीनों और एक सप्ताह में ही उपभोग कर समाप्त कर दे रहे हैं।
प्रदूषण की अधिकता के कारण देश की अधिकांश नदियां अस्तित्व के संकट से जूझ रही हैं। रियल एस्टेट्स का बढ़ता कारोबार इसका जीता-जागता उदाहरण है। आईपीसीसी के अध्ययन के अनुसार पीछले सदी के दौरान पृथ्वी का औसत तापमान १.४ फारेनहाइट बढ़ चुका है। अगले सौ सालों के दौरान इसके बढ़कर २ से ११.५ फारेनहाइट होने का अनुमान है। यह बढ़ोतरी जलवायु और मौसम प्रणाली में व्यापक स्तर पर विनाशकारी बदलाव ला सकती है।
इसे अब मानना ही पड़ेगा कि हम पृथ्वी के दोहन के अपराधी हैं। लेकिन यदि गायों को बचा लिया जाए तो हम अपराधी होने से बच सकते हैं। क्योंकि गायों का गोबर शुद्ध मिट्टी है। इससे मिट्टी के बिगड़ते संतुलन को बचाया जा सकता है। गायों का मूत्र शुद्ध वायु है, धरती पर जितना गौमूत्र होगा उतना ही वायु की प्रकृति बचेगी। गायों का दूध जल तत्व है। इससे जल का संतुलन बनता है। गौमूत्र जल की भी शुद्धिकरण करता है। इसीलिए भारतीय दर्शन में कहा गया है कि यदि जीवन में गाय हो तो वह सभी पाप को धो डालती है।
गौपालन से हमारे द्वारा किए गए प्रकृति के दोहन की पूर्ति हो जाती है और मनुष्य जीवन ऋणमुक्त हो जाता है। इसी को हमारे पुराणों में मोक्ष्य की प्राप्ति का मार्ग बतलाया है।