२१ जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का दूसरा वर्ष है। यह भारत की बड़ी जीत है। आज योग रहस्य से निकलकर फूटपाथ पर आ गया। अर्थात् जन-जन के लिए उपयोगी हो गया। हम कल्पना करें उन दिनों की जब संपूर्ण भारत निरोगी हुआ करता था। यानि सबसे नजदीक में १८ वीं शताब्दी तक का भारत। तब भारत में कोई गंभीर रोग नहीं था।
प्रश्न उठता है कि उन दिनों कितने लोग योग करते थे ? भारतीय इतिहास गवाह है कि उन दिनों आज जैसा योग बहुत कम ही लोग करते थे। योग रहस्य की तरह था। केवल संत प्रवृति के लोगों के बीच प्रचलित था। फिर भारत कैसे से निरोगी था ?
इस प्रश्न के उत्तर को समझने से पहले हमें योग और प्राणायाम को समझ लेना चाहिए। योग शरीर को कुशल मंगल रखने की कला है। जबकि प्राणायाम ‘शरीर को चलाने वाला शुक्ष्म शरीर’ को कुशल – मंगल रखने की कला है। समझने की दृष्टि से शरीर किसी कंप्यूटर का हार्डवेयर है और शुक्ष्म शरीर साफ्टवेयर है। शरीर के हार्डवेयर के लिए योग (योगासन) और साफ्टवेयर के लिए प्राणायाम है। अर्थात् प्राण को संतुलित रखने वाला।
गऊसेवा और गऊ के साथ कर्म (गऊ आधारित कृषि कर्म) करते हुए सभी प्रकार के योगासन होते हैं। इसके लिए अलग से समय निकालने की जरुरत नहीं है। जैसे यदि घर पर गऊ हो तो प्रात: पांच बजे से उसकी साफ – सफाई, फिर दूध निकालने का कार्य, फिर उसे चारा देने के कार्य अथवा उसके साथ चारागाह में जाने का कार्य आदि। इन सभी क्रियाओं में सभी योगासन हो जाते हैं।
अब रही बात प्राणायाम की तो यह योगासन से बिलकुल अलग है। प्राणायाम शरीर के सॉफ्टवेयर को संतुलित रखने की कला है। इसमें श्वांस क्रिया के शुक्ष्म व्यायाम की जरुरत उतनी नहीं है जितनी कि श्वसन अंगों को प्राण वायु प्रदान करने की। प्रश्न उठता है कि क्या किसी योग या प्राणायाम की क्रिया से प्राणवायु (आक्सिजन) तैयार किया जा सकता है ?
प्राणवायु तैयार करने की क्षमता या तो वनस्पतियों के पास है या फिर गाय के पास है। दोनों में तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो गाय के पास अधिक है। गाय २४ घंटे ऑक्सिजन देती है जबकि वनस्पति केवल १२ घंटे (तुलसी और पीपल को छोड़कर)। यदि हम भारतीय नस्ल की गाय के गोबर का रासायनिक विश्लेषण करें तो पता चलता है कि इसमें लगभग २३ प्रतिशत ऑक्सिजन है। सबसे रहस्य वाली बात यह है कि इस गोबर को जितनी बार रुपांतरित करते हैं उतना ही ऑक्सिजन बढ़ता जाता है। जबकि मॉडर्न साइंस कहता है कि किसी भी वस्तु को जब रुपांतरित किया जाता है तब उसमें ‘प्रोसेस लॉस’ होता है। सूखे हुए गोबर के कंडे में लगभग ३० प्रतिशत और जब गोबर के वंâड़े को जलाकर भष्म कर देते हैं तब उसमें ४६.६ प्रतिशत ऑक्सिजन हो जाता है। इतना ही नहीं गाय का मूत्र भी ऑक्सिजन का भंडार है। केवल ऑक्सिजन ही नहीं, बल्कि शरीर को जितने प्रकार के ऑक्साईड की जरुरत है वह सब गौमूत्र में है। गऊमाँ का दूध भी कम नहीं है। इसमें भी भरपूर ऑक्सिजन है। साथ में शुद्ध हायड्रोजन भी है। यही हायड्रोजन हमारे मस्तिष्क में जाकर मस्तिष्क को संतुलित रखता है।
इस सृष्टि में हायड्रोजन के अणु सबसे छोटे हैं और कम से कम भार वाला है। यही कारण है कि केवल देशी गाय का घृत जिसमें भरपूर हायड्रोजन है, वही मस्तिष्क के शुक्ष्म छिद्रो में घुसकर मस्तिष्क के करोड़ो कोशिकाओं को संतुलित करता है। इसके अलावा शुद्ध प्राकृतिक ऑक्सिजन ही प्रवेश कर सकता है। यह दोनों केवल गाय के पास है। तभी गाय के सानिध्य में आने से विचारों का शुद्धिकरण होता है। गऊमाँ जब श्वांस छोड़ती है तब भी ऑक्सिजन ही छोड़ती है। अत: हमारे प्राण की जो खुराक है, वह गाय के पास है। जो लोग गाय के गव्यों (गोबर, गौमूत्र और दूध) का उपयोग अपने जीवन में करते हैं उनके प्राण स्वत: संतुलित होते हैं। उन्हें अलग के कोई व्यायाम की जरुरत नहीं पड़ती।
सफल प्राणायाम की कला शरीर के सात चक्रों में है। इन्हीं चक्रों को संतुलित कर हम अद्भुत अदृश्य शक्ति अर्जित करते हैं। इन चक्रों की खुराक भी गाय का गव्य ही है। प्रथम – आज्ञा चक्र ; इस चक्र का संतुलन गाय के गोबर से बना भष्म आसानी से करता है। द्वितीय चक्र – सहस्त्रार चक्र ; इसे गाय के दूध से मक्खन बनाकर निकाले हुए घृत से होता है। तृतीय चक्र -विशुद्धि चक्र ; इसका संतुलन गौमूत्र से होता है। चतुर्थ चक्र – हृदय चक्र ; इसका संतुलन मक्खन और घृत दोनों से होता है। पंचम चक्र – नाभी चक्र ; इसका संतुलन भी घृत से ही होता है। षष्ठ चक्र – स्वाधिष्ठान चक्र ; इसका संतुलन दुग्ध से होता है और सप्तम चक्र – मूलाधार चक्र ; इसका संतुलन छाछ से होता है। इस प्रकार शरीर को संतुलित रखने के लिए (चाहे व भौतिक शरीर हो या फिर शुक्ष्म शरीर) गाय अनिवार्य है। गाय के बिना यह मानव शरीर पशु सामान्य है।
योगासन में अंगों का व्यायाम होता है लेकिन सफल तब होता है जब उन अंगों को उनकी खुराक मिले। इसी प्रकार शुक्ष्म प्राणायाम भी प्राणवायु लेने और छोड़ने वाले अंगों को सुचारु रखते हैं लेकिन उन अंगों को उनकी खुराक मिले तब। ये दोनों प्रकार के खुराक गाय के गव्यों में भरपूर है। अत: गाय के बिना योग और प्राणायाम दोनों ही अधूरे हैं।