जनगणना में जब यह तय हो गया कि आज भी भारत की ६५ प्रतिशत जनता गांव में बसती है फिर भी शहरों को स्मार्ट बनाने का क्या तूक ? जब से नरेन्द्र मोदीजी प्रधानमंत्री बने हैं उन्हें स्मार्ट सीटी बनाने की धुन चढ़ी है। प्रश्न है कि क्या सच में भारत को स्मार्ट सीटी की जरुरत है ? स्मार्ट सीटी बनने के बाद उसमें रहने वाले लोग कौन है ? जिस प्रकार से स्मार्ट सीटी की खबरें आ रही है उससे तो यही लगता है कि स्मार्ट सीटी में करोड़पति से नीचे कोई भी परिवार नहीं रह सकता है। निम्न शुद्र समाज भी रहेगा लेकिन उनकी औकात भी बड़ी होनी चाहिए।
भारत का सच कुछ और है। आज भी भारत के सभी गांव सड़क और पेय जल की सुविधा से नहीं जुड़ पाए हैं। सभी गांवों में बिजली नहीं है। सभी गांव में चिकित्सक और अस्पताल नहीं है। ऐसे में भारत के कुछ प्रदेशों में स्मार्ट सीटी बना कर भारत को और गहरे कर्ज में डुबोने का क्या अभिप्राय है ? सच बड़ा कड़वा है कि इन स्मार्ट सीटी में भारतीय कम और विदेशी ज्यादा रहेंगे। फिर प्रश्न यह है कि विदेशियों को बसाने के लिए हम कर्ज क्यों लें ? आज भारत में धड़ल्ले के साथ विदेशियों को स्थान दिया जा रहा है। लाल कालीन बिछाई जा रही है कि विदेशी आएं और खेती की जमीन पर वंâपनियां बसाएं। फिर धीरे – धीरे उनके परिवार आने लगेंगे। वे बसने लगेंगे। इस सच को भी जान लेना चाहिए कि आज का भारत संसार के देशों में सबसे सुरक्षित राष्ट्र है। चाहे दृष्टि पर्यावरण का हो, चाहे शांति का मार्ग हो, चाहे मोक्ष्य का मार्ग हो। भारत से श्रेष्ठ कोई स्थान नहीं।
स्मार्ट सीटी बने, यदि इससे भारत के भूगोल का विकास होता है, भारत के पर्यावरण का विकास होता है, भारत में शांति का मार्ग बढ़ता है। पर उसके पहले समझना होगा कि योजना क्या है – भारत का स्मार्ट सिटी का प्रयोग अनोखा है। शायद दुनिया में अपने किस्म का सबसे बड़ा प्रयोग भी। लोकसभा के पहले सत्र में नई सरकार की ओर से राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के अभिभाषण में बदलते भारत का नक्शा पेश किया गया था। नरेंद्र मोदी के आलोचकों ने तब भी कहा था और आज भी कह रहे हैं कि यह एक राजनेता का सपना है। इसमें परिकल्पना है, पूरा करने की तजबीज नहीं। देश में सौ स्मार्ट सिटी का निर्माण, अगले आठ साल में हर परिवार को पक्का मकान, डिजिटल इंडिया, गांव-गांव ब्रॉडबैंड का वादा (जिससे ज्यादा जरुरत बिजली, पानी और सड़क की है) और हाई स्पीड ट्रेनों के हीरक चतुर्भुज तथा राजमार्गों के स्वर्णिम चतुर्भुज के अधूरे पड़े काम पूरे करने का वादा वगैरह।
सरकार की योजनाएं कितनी व्यावहारिक या अव्यावहारिक हैं, इनका पता तो कुछ समय बाद लगेगा पर तीन योजनाएं ऐसी हैं, जिनकी सफलता या विफलता हम अपनी आंखों से देख पाएंगे। ये हैं – आदर्श ग्राम योजना, डिजिटल इंडिया और सौ स्मार्ट सिटी। पिछले दिनों सरकार ने सौ में से ९८ स्मार्ट सिटी की सूची घोषित की है। जम्मू कश्मीर ने अपने राज्य के दो शहरों के नाम की घोषणा के लिए कुछ समय मांगा है। सवाल है कि सौ शहर वास्तव में स्मार्ट बन पाएंगे या नहीं? दूसरा सवाल, बाकी शहर क्या स्मार्ट नहीं बनेंगे? भारत के २८ राज्यों और सात केन्द्र शासित क्षेत्रों में ६३८ जिले हैं। हर जिले में तीन-चार शहर या कस्बे मान लें तो देशभर में ढाई से तीन हजार शहर हैं। इस बीच कुछ बड़े गांव छोटे कस्बों के रूप में उभर कर सामने आएंगे। इनमें सुविधाओं की दशा क्या है, हम सब जानते हैं। ज्यादातर शहरों की पहचान कूड़े के ढेर और गंदी बस्तियों के रूप में है। अगले दस से बीस वर्षों में देश इस विस्तार को और तेजी से होते देखेगा, क्योंकि अगले दो-तीन दशक तक जनसंख्या विस्तार होगा।
भारत सरकार की निगाह में स्मार्ट सिटी क्या है? शहरी विकास मंत्रालय के अवधारणा पत्र के अनुसार देश में शहरी आबादी ३१ फीसद है, जिसकी देश की जीडीपी में हिस्सेदारी ६० फीसद से ज्यादा है। अगले १५ सालों में शहरी आबादी की जीडीपी में हिस्सेदारी ७५ फीसद होगी। सरकार की परियोजना तीन बुनियादी बातों पर केंद्रित है। १) जीवन स्तर, २) निवेश और ३) रोजगार। किफायती घर हो, जिसमें पानी-बिजली चौबीसों घंटे मिले। आसपास शिक्षा और चिकित्सा की सुविधा हो। मनोरंजन और खेल की व्यवस्था हो। सुरक्षा का पूरा इंतजाम हो। आसपास के इलाकों से अच्छी और तेज कनेक्टिविटी हो, परिवहन व्यवस्था ठीक हो। अच्छे स्कूल और अस्पताल भी मौजूद हों। स्मार्ट सिटी के अंदर एक जगह से दूसरी जगह तक जाने में यात्रा की अवधि ४५ मिनट से ज्यादा न हो। सड़कों के साथ कम से कम २ मीटर चौड़े फुटपाथ हों। ८०० मीटर की दूरी या १० मिनट पैदल चलने पर सार्वजनिक परिवहन सुविधा हो। ९५ फीसद इलाके ऐसे हों जहां ४०० मीटर से भी कम दूरी पर स्कूल और पार्क मौजूद हों। साथ ही २० फीसद मकान आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए हों। झुग्गी बस्तियों को रोकने के लिए यह व्यवस्था बेहद जरूरी है। १०० फीसद घरों में बिजली कनेक्शन हों। शहर की बिजली का कम से कम १० फीसद वैकल्पिक ऊर्जा स्रेत से हो। अस्सी फीसद मकान ग्रीन यानी पर्यावरण मित्र हों। कोई बिजली-पानी चोरी न कर पाए। सौ फीसद घरों तक वाई फाई कनेक्टिविटी हो। हर १५ हजार लोगों पर एक डिस्पेंसरी हो। एक लाख की आबादी पर ३० बिस्तरों वाला छोटा अस्पताल, ८० बिस्तरों वाला मीडियम अस्पताल और २०० बिस्तरों वाला बड़ा अस्पताल हो। हर २५०० लोगों पर एक प्री-प्राइमरी, ५००० पर एक प्राइमरी, हर ७५०० पर एक सीनियर सेकंडरी और हर एक लाख की आबादी पर पहली से १२वीं कक्षा तक का एक इंटीग्रेटेड स्कूल हो। सवा लाख की आबादी पर एक कॉलेज हो। दस लाख की आबादी पर एक विश्वविद्यालय, एक इंजीनियरिंग कॉलेज, एक मेडिकल कॉलेज, एक प्रोफेशनल कॉलेज और एक पैरामेडिकल कॉलेज हो।
९८ स्मार्ट सिटी में २० शहरों का विकास पहले दौर में होगा। बाकी का दूसरे और तीसरे दौर में। स्मार्ट सिटी के लिए चुने गए हर शहर को पहले साल २०० करोड़ और उसके बाद चार साल तक हर साल सौ-सौ करोड़ रुपये मिलेंगे। इसके बाद २०१६ और २०१७ में दूसरी और तीसरी सूची जारी की जाएगी। इस प्रोजेक्ट पर ४८ हजार करोड़ रपए खर्च होंगे। इसके लिए एक विशेष उद्देश्य निगम बनाया गया है। भारत का यह प्रयोग अपने किस्म का अनोखा है।
संपूर्ण भारत के पैसे से केवल शहरों का विकास, देखना है कि यह योजना कितनी व्यावहारिक सिद्ध होती है। भविष्य के शहर में बिजली के ग्रिड से लेकर सीवर पाइप, सड़कें, कारें और इमारतें हर चीज नेटवर्क से जुड़ी होगी। भवन अपने आप बिजली बंद करेगी, कारें खुद पार्किंग ढूंढेंगी। यहां तक कि कूड़ादान भी स्मार्ट होगा। लेकिन ये शहर वैâसी संस्कृति में होंगे यह कहना मुश्किल है। संस्कृति की वस्तुएं होंगी लेकिन निर्भर करता है कि वहां बसने वाले लोग कौन होंगे ? भारत जैसे देश में जहां नियोजित शहरीकरण शुरुआती दैर में है, पता नहीं वैâसा और क्या होगा ?
जो भी होगा, भारत नहीं होगा। लोग इंडिया में बसेंगे। इंडियन बनेंगे। पिज्जा, बर्गर और हॉट डौग खाएंगे, फिर जीवन भर की कमाई अस्पतालों को दे देंगे। न किसी को मोक्ष्य में जाने की सोच होगी और न ही भारत के भविष्य को संवारने की। काश ! इन स्मार्ट शहरों में मंदिर और गौशालाएं भी बनती, तो लोग निरोगी होते, धार्मिक होते और भारत शहरीकरण के साथ – साथ शांति की ओर बढ़ता ही जाता। गाय के बिना सृष्टि नहीं ; फिर इन स्मार्ट शहरों की क्या औकात ?