इसमें कोई दो राय नहीं है कि डिब्बबंद और पैकेट बंद भोजन बच्चों से लेकर बुढ़ों तक के लिए नुकसानदेह है। इसके कुछ मौलिक कारण हैं। जिनमें १) सभी तैयार किए हुए भोज्य पदार्थों की आयु बहुत कम होती है। कम का अर्थ है अधिक से अधिक दो – चार दिन या उससे अधिक सप्ताह भर, लेकिन बाजारवाद व्यवस्था के कारण इसमें कुछ ऐसे रसायन मिलाए जाते हैं जिससे उस भोजन को खराब करने वाले जीवाणु उत्पन्न नहीं होते। इसमें सबसे अधिक खतरनाक तथ्य यह है कि ऐसे रसायन हमारे शरीर को भी बहुत बुरी तरह से प्रभावित करते हैं। इन्हीं रसायनों में कृत्रिम प्रिजर्वेटिव भी है। यह हमारे शरीर के अंदर के मित्र जीवाणुओं को भी मारते हैं जिससे हमारे शरीर का अम्लिय संतुलन बिगड़ जाता है। खासकर ऐसे रसायनों को हमारा गुर्दा सहन नहीं कर पाता है। क्योंकि प्रकृति ने गुर्दों को प्राकृतिक रस छानने योग्य बनाया है न कि रसायन। इस कारण यह बहुत ही खतरनाक होता है।
२) खाद्य वस्तुओं के ऊपर जिलेटिन की सुक्ष्म परत चढ़ाई जाती है ताकि वह नमी से बचा रहे और उसका कुरकुरापन बना रहे। खासकर बिस्कुट के ऊपर जिलेटिन की पतर चढ़ाना अनिवार्य कर दिया गया है। ज्ञान हो कि भारत में जितने भी जिलेटिन बनाने वाली कम्पनियां हैं सभी जानवर के चर्बी से ही जिलेटिन बनाते हैं क्योंकि सब्जियों से जिलेटिन बनाना कई गुणा महंगा पड़ता है। बाजारी प्रतिस्पद्र्धा में सब्जियों के बनी जिलेटिन देना संभव नहीं हो पाता।
अनेक अध्ययनों से यह तथ्य सामने आ चुका है कि डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों से बीमारियां पनपती हैं। ऐसे रोगों का तत्काल पता नहीं चलता और ये कई बार खतरनाक होकर ही पकड़ में आते हैं। खासकर बच्चों में ऐसे खाद्य पदार्थों का बड़ा असर होता है। इस समस्या के चुपचाप अपने पांव पसारने के कई कारण हैं। जिनमें बच्चों की आसानी से पहुंच, स्कूलों के पास बिकने वाले पैकेटबंद खाद्य पदार्थों से हो रही है। रेल में और रेलवे स्टेशनों पर धड़ल्ले से बेचे जा रहे खाद्य पदार्थों से हो रही है जिस पर किसी का सही – सही नियंत्रण नहीं है। पैकेटों के लिए उपयोग में लाई जाने वाली वस्तुएं जैसे प्लास्टिक आदि की थैलियां, जिसमें बहुत ज्यादा टौक्सिन होता है। यह भी एक बड़ा कारण है।
इस समस्या को बार-बार रेखांकित किए जाने के बावजूद अब तक स्कूलों के आसपास डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों की बिक्री पर पाबंदी लगाने के निर्देशों पर अमल नहीं हो सका है। उच्च न्यायालय ने तो दिल्ली सरकार को पहले ही कह दिया था कि स्कूलों में और उनके आसपास डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों की बिक्री पर रोक लगाए। लेकिन न तो दिल्ली की सरकार ने ऐसे कारगर कदम उठाए और न ही उच्च न्यायालय के इस आदेश का अनुपालन अन्य सरकारों ने किया। डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों पर रोक लगाने को लेकर तर्क दिया जा रहा है कि भागदौड़ भरी जिंदगी में फास्ट फूड यानी झटपट तैयार होने वाले या डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ कई तरह की झंझटों से छुटकारा दिलाते हैं। लेकिन लोग यह भूल जाते हैं कि खाने – पीने की ऐसी चीजों का स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ता है और यह कई अन्य प्रकार के झंझटों को खड़ा कर देता है।
आज परिवार में पैसे की आवक बढ़ने के कारण समाज में डिब्बाबंद भोजन का प्रचलन बढ़ा है। जबकि अनेक अध्ययन बता चुके हैं कि इन खाद्य पदार्थों से न सिर्फ मोटापा बढ़ता है, बल्कि मधुमेह, पथरी, उच्च रक्तचाप और हृदय रोग जैसी बीमारियां कम उम्र के बच्चों तक को अपनी चपेट में ले रही हैं। देश के विभिन्न स्कूलों में हुए अध्ययनों से यह भी उजागर हो चुका है कि फास्टफ़ूड खाने वाले बच्चों का स्वभाविक विकास बाधित होता है। विचित्र है कि स्कूलों में एक ओर बच्चों को पौष्टिक भोजन के बारे में पढ़ाया – बताया जाता है, वहीं दूसरी ओर परिसर की कैंटीन में डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ उपलब्ध होते हैं।
बिना नाम की जानकारी दिए यह जानकारी देना उचित होगा कि तमिलनाडु के मेडिकल कॉलेजों /अस्पतालों के वैâन्टिनों में भी ऐसे घातक डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ धडल्ले की बेचे जा रहे हैं। अस्पतालों में मरीजों को खिलाया जा रहा है। जिसके कारण यह प्रचलन हमारे घरों में आ गया है। यह कहीं न कहीं हमारे शरीर को नर्वâ में ले जाने की दिशा में कार्य कर रहा है।
अभी – अभी मैगी का इतना बड़ा घपला उजागर हुआ। जान पर खेल कर अधिकारी ने ऐसे उजागर कार्य किए। अंत में क्या हुआ बचाव के पक्ष में हमारे देश के प्रधानमंत्री आ गए। इसमें दो ही अर्थ लगते है – १) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को मैगी वंâपनी ने खरीद लिया। २) मोदी जी विदेशी कंपनियों की बंदरघुड़की से डर गए। दबी जुबान से सरकार के चमचे तर्क दे रहे हैं कि मैगी के कारनामें उजागर होने और उसका व्यापार चौपट होने से विदेशी निवेश को धक्का लग रहा है। अर्थात विदेशी वंâपनी हम भारतवासियों के सेहत से खिलवाड़ करता रहे तो उसका कोई दोष नहीं ? बचाव में प्रधानमंत्री सामने आ जाएं। यह कैसे देश का प्रधानमंत्री ? क्या नरेन्द्र मोदीजी को हम भारतवासियों ने विदेशी वंâपनियों के लिए लाल कारपेट बिछाने के लिए प्रधानमंत्री बनाया है ?
इसका एक ही रास्ता है – स्वदेशी के संकल्प के साथ जीना। भारतवासी इन कम्पनियों के माल को खरीदना बंद कर दें। भारत के लोग संकल्प करें कि हम किसी भी कीमत पर डब्बाबंद खाद्यवस्तु नहीं खरीदेंगे। भारत के प्रत्येक राज्य में नमकीन और मीठाईयों के इतने सारे व्यंजन हैं कि वर्षभर हम एक – एक दिन एक – एक खा सकते हैं। ऐसे में सड़ाकर बनाया हुआ मैगी या कोई और व्यंजन खाने की जरुरत कहां पड़ती है ?.