फिरंगी मेकॉले की डायरी के शब्द (वर्ष १८३४) ‘मैंने भारत के गांव – गांव, शहर – शहर को छान मारा लेकिन इस देश में कोई भी व्यक्ति गंभीर रूप से बिमार, भीखारी और बेरोजगार नहीं मिला।’ संसार के मानचित्र में ऐसा अद्भुत देश था हमारा भारत।
वर्ष १८३४ – अंगरेजों की संसद (हाउस ऑफ कॉमन्स) लंदन में बैठती है और बहस होती है कि यदि भारत को सदियों तक गुलाम बनाकर रखना है तो इस देश को बिमार, भीखारी और बेरोजगार बनाना पड़ेगा। सभी गोरे एकमत होते हैं। यह कार्य वैâसे किया जाए इस पर कई दिनों तक बहस होती है। अंत में निर्णय लिया जाता है कि मेकॉले को ही यह कार्य सौंपा जाए क्योंकि इसने ही भारत की अद्भुतता को खोजा है।
मेकॉले इसे स्वीकारता है और कहता है कि ‘इसके लिए एक नीतिगत ढ़ांचा तैयार करना होगा’। कई वर्षों की मेहनत के बाद उसने एक एजुकेशन का एक प्रारुप तैयार किया और संसद के सामने रखा। कहा – यदि इस एडुकेशन को भारत में लागू कर दिया गया तो भारत की आने वाली पीढ़ियां गुलाम ही बनेंगी। वह गुलामी में रहना सीख जाएगी। यद्धपि यह आसान नहीं है। इस पर वह कहता है कि भारत का कोई भी गांव या शहर ऐसा नहीं है जहां कम से कम एक गुरुकुल नहीं है। कई बड़े गांवों में तो कई – कई गुरुकुल हैं। हायर लर्निग इंस्टच्यूशन (अर्थात विश्वविद्यालय) की संख्या भी दो हजार के आस – पास है। इसमें भारत के लोगों की श्रद्धा है। इसे तोड़ना बहुत मुश्किल कार्य है।
इस पर एक सांसद पूछता है कि इन गुरुकुलों को चलाता कौन है ? इसे पैसा कहां से मिलता है (पंâडिंग) और वहां पर दी जाने वाली शिक्षा के मेरुदंड़ में कौन – कौन से है ?
इस पर मेकॉले कहता है कि ये सभी गुरुकुल स्वचालित हैं। स्वावलंबी हैं। इन गुरुकुलों को चलाने के लिए पैसे की जरुरत नहीं पड़ती। गुरु नि:शुल्क शिक्षा प्रदान करते है और विद्यार्थी अपने लिए भोजना आदि की व्यवस्था भीक्षाटन से करते हैं। वहां पर दी जाने वाली शिक्षा के मेरुदंड़ में गुरु और गाय होती है।
इस पर एक सांसद तपाक से बोलता है कि तब तो इसे तोड़ना बहुत आसान है। गाय को समाप्त करने के लिए कुछ कानून बन सकता है और ऐसे ही कानून बनाकर गुरुकुलों को बंद करा सकते हैं। फिर ऐसा ही हुआ। भारत के गुरुकुलों को अनैतिक घोषित किया गया। वहां दी जाने वाली शिक्षा को अनैतिक बताकर उसे पंजिकृत करने को कहा गया। पंजिकरण के बाद वहां मेकॉले द्वारा तैयार किए गए एडुकेशन को लागू करने को वाध्य किया गया। जिसमें भारत की भावी पीढ़ियों को गुलाम बनाने की पूरी व्यवस्था की गई थी। जिन – जिन गुरुओं ने इसे मान लिया वे सभी स्वूâल – कॉलेज और विश्वविद्यालय बन गए। इसका संचालन अंगरेजी सरकार करने लगी। जिन-जिन गुरुओं ने फिरंगी एडुकेशन को नहीं माना उन्हें जेल में ठूंस दिया गया। इस प्रकार फिरंगियों ने भारत की शिक्षा व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया। इसी प्रकार के एक कानून के अंतरगत गायों की हत्या शुरु हुई। तर्वâ – अंगरेजी सैनिकों को पेट भरने के लिए गऊमांस की आवश्यकता। बाद में गऊमांस का निर्यात किया जाने लगा। इस पर कभी और चर्चा करुंगा।
इतिहास गवाह है कि जब – जब भारत पर विदपाएं आई हैं भारत के गुरुकुलों ने निपटा है। चाहे मुगलों का आक्रमण रहा हो चाहे अंगरेजों का। इस कारण भी गुरुकुलों को तोड़ना अंगरेजों की प्राथमिकता रही। गुरुकुलों के टुटने के बाद गुरु और शिष्य की सदियों से चली आ रही अद्भुत ज्ञान प्रदान करने की परंपरा नष्ट हो गई। युवा पीढ़ी को ज्ञान प्रदान करने वाला गुरु का शिष्य से विच्छेद हो गया। फिर क्या था – देखते ही देखते भारत में बेरोजगारों की भीड़ खड़ी हो गई। इनकों अंगरेजों ने जैसे चाहा उपयोग में लाया।
हमारे देश का दुर्भाग्य यही रहा कि अभी तक क्रिमनल मेकॉले एजुकेशन में ही भारत बढ़ रहा है। अभी तक किसी भी सरकार की हिम्मत नहीं हुई कि वह मेकॉले एजुकेशन से भारत को निकाल सके। ‘‘भारत की जरुरत नहीं’’ बता सके। और फिर से भारत में गुरुकुल परंपरा को जीवंत कर सके। यहां पर यह बताना भी ठीक रहेगा कि आज के भारत में जो कुछ भी गुरुकुल चल रहे हैं उनके केवल नाम गुरुकुल हैं लेकिन वहां भी मेकॉले एडुकेशन ही दिया जा रहा है। हरियाणा और दिल्ली के आस – पास कुछ ऐसे गुरुकुल हैं जहां पर आंशिक रूप से गुरु और शिष्य परंपरा के गुरुकुल जरुर हैं। जहां पर ज्यादातर बच्चे ऐसे होते हैं जो किसी कारणवश स्कूल नहीं जा पाते। इस कारण माँ – बाप उन्हें सुधारने के लिए (वास्तव में अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होने के लिए) गुरुकुल भेज देते हैं। शिक्षा ग्रहण के विषय को लेकर बहुत कम माँ – बाप अपने बच्चों को भेजते हैं।
भारत में फिर से गुरुकुलीय शिक्षा व्यवस्था खड़ी हो, भारत के लोग फिर से निरोगी बनें – इस सोच के साथ ’‘गऊमाँ से निरोगी भारत यात्रा’’ शुरु किया है। इसका शुभारंभ केरल के काजंगाड़ (कासरगोड़ जिला) से आश्विन कृष्ण पक्ष सप्तमी (४ सितम्बर) को प्रारंभ किया है। इस यात्रा को केरल से प्रारंभ करने के पीछे तीन बड़े कारण हैं। १) केरल भले ही मेकॉले एडुकेशन में सौ फिसदी खरा उतरा है लेकिन परिणाम भी सामने है। आज का केरल सौ फिसदी बिमार है। २) आज के केरल में वृद्ध पीढ़ी सबसे संकट में है। ३) जिस केरल ने संसार को स्वसुरक्षा के लिए कुंगफू-कराटे आदि के गुरु सीखलाए आज वही केरल अपनी संस्कृति की सुरक्षा नहीं कर पा रहा है।
आज इस यात्रा का तीसरा पड़ाव त्रिशुर है। अनुभव बड़ा ही सुखद और आनंदमय है। मलयालियों में स्वीकार्यता है। भाषा में कोई विरोध नहीं है। उनके जिन्न में सुप्त पड़ा शाकाहारी और प्राकृत्य जीवन जाग रहा है। उन्हें जीवन में गाय और गुरु की महत्ता की आवश्यकता सामने दिखलाई दे रही है। यदि हम इस केरल को जगृत करने में सफल हो पाए तो जल्दी ही मेकॉले एडुकेशन को उखाड़ फेकने की क्रांति भी खड़ी हो जाएगी और भारत उस क्रांति की आग में तप कर निश्चित ही फिर से स्वर्णमय भारत बनेगा।
MERE LIYE KOI SEVA KA MAUKA HO TO BATAYE. MAIN YAHAN PERSONAL LEVEL PAR KOSHISH KAR SAKA TO MUJHE AANAND MILEGA AUR DESH LI SEVA KAR SAKONGA
swagat
जय गुरूदेव,,,
jai ho