भारत में फिर से गुरुकुलीय शिक्षा व्यवस्था खड़ी हो, भारत के लोग फिर से निरोगी बनें – इस सोच के साथ ’‘गऊमाँ से निरोगी भारत यात्रा’’ कासरगोड़ जिला के कांजगाड़ से शुरु होकर केरल की राजधानी त्रिवेन्द्रम में १५ सितम्बर को समाप्त हुआ। यह यात्रा मुख्य रूप से कोजिकोड़, कोडगरा व इरिंगलकोड़ा (त्रिशूर जिला), परउर व कोदमंगलम (एरनाकुलम जिला), अडिमाली (इडकी जिला), चेंगनूर व चेयरतला (अळपूळा जिला) होते हुए ओचिरा और अंत में त्रिवेन्द्रम में समापन हुआ।
इस दौरान केरल को बड़ी गहराई के साथ समझने का मौका मिला। जिसमें से एक सत्य बाहर निकल कर आता है कि यदि केरल के पद चिन्हों पर चलकर भारत विकास मार्ग को तलासता है तो क्या परिणाम आ सकता है ? सौ फिसदी मेकॉले एडुकेशन लागू होने के बाद आज का केरल जैसा है, वैसा ही – इसके पद चिन्हों पर चलकर दूसरे प्रदेश भी बनेंगे। इसलिए दुष्परिणाम के रूप में केरल को जानने की जरुरत है। इसे आधार मानकर – प्रमाण मानकर मेकॉले एडुकेशन को नाकार जा सकता है। आज के केरल में जो सामाजिक व्यवस्था का और स्वास्थ्य का संकट खड़ा हुआ है यह उसी का परिणाम है।
बड़े – बड़े घरों में केवल दो वृद्ध हैं। अकेलापन उन्हें खा रहा है। इस अकेलापन ने उनके मन में विषाद पैदा किया है। सामाजिक व्यवस्था को चलाने वाला चौपाल पूरी तरह से नष्ट हो चुका है। कृषि के लिए खेत हैं लेकिन उसमें कर्म करने वाला कोई नहीं है। कृषि की जरुरत का भूगोल और मौसम भी है लेकिन खाद्य सामग्री बाहर से आ रही है। केरल में आने वाला बाहर का अनाज, फल, फल और सब्जियां भरपूर जहरीला है। डेयरियों के दूध पूरी तरह से जहरीले हैं। घरेलू दूध उत्पादन शून्य है। परिणाम – ए १ मिल्क से पटा हुआ पूरा केरल बिमार है।
चौपाल में बैठने वाला कोई नहीं है। परिणाम – पूराने सामाजिक चौपालों पर अधर्मियों का कब्जा है। सीधी बात हो तो मंदिरों और धार्मिक बैठकों में उन्हीं का कब्जा है जो केरल की दुखती रग को पकड़कर धर्मांतरण का व्यवसाय खड़ा किए हैं। आज उन्हें भी समझ में आ रहा है कि धर्मांतरण ने उनके परिवारों को भी संकट में लाया है। लेकिन यह वन-वे-टैफिक होता है। कोई एक बार धर्म बदल ले तो उसे वापस अपने स्वधर्म में आना बहुत मुश्किल होता है। एक वल्ड मफिया उन्हें घेर लेता है। फिर कई पीढ़ी निकल जाने के बाद सामाजिक रिस्ते स्वधर्म में वापस नहीं आने देते।
ऐसी ही बुरी स्थिति केरल की राजनीति की भी है। केरल का यह सब जो कबाड़ा हुआ है उसमें कम्यूनिस्ट है। इन वामपंथियों ने ही केरल का नाश किया है। अब जब केरल के हिन्दू धर्मांस्थी ईसाई धर्मांस्थियों के साथ मिलकर सामाजिक व्यवस्था को बनाने की कोशिश कर रहे हैं तब वामपंथियों की भैहें तन गई है और उनकी हालत पतली हो गई है। अत: केरल में अब कम्यूनिस्ट की जिन्दगी लम्बी नहीं है। पश्चिम बंगाल में कम्यूनिस्ट के जड़ों में दीमक लग गया है, यहां भी पांव के नीचे से धरती खिसक रही है।
मंदिरों की ऐतिहासिकता पूरी तरह से नष्ट हो चुकी है। गाय और गोचर की भूमि पर पूरी तरह से गैरधर्मियों का कब्जा हो चुका है। गाय हजार लोगों की आबादी पर एक है। बच्चे दूध के लिए तरसते हैं। भगवान श्रीकृष्ण के चित्र को देखकर मक्खन की केवल कल्पना करते हैं। किशोरों में केवल नकारात्मकता के भाव हैं। उनके पास विदेश जाने के सिवा कोई दिशा नहीं है। कमाना और कमाई को अस्पतालों में देने के सिवा कोई दूसरा उत्तरदायित्व नहीं है। उन्हें लगता है कि यही जीवन है।
प्रश्न यही उठता है कि क्या हम ऐसे केरल को सौ फिसदी एडुकेशन वाला रोल मॉडल बना सकते हैं ? यदि नहीं तो, समय के साथ हमें इस एडुकेशन व्यवस्था को ध्वस्त करना पड़ेगा। इस भारत को फिर से गुरुकुल की जरुरत है। शिक्षा में व्यवसाय का भाव नहीं, गुरु-शिष्य परंपरा की जरुरत है। मलयालियों के हृदय में पश्चाताप है, इससे हमें सबक लेने की जरुरत है।
कोटयम जिला के काणकारी में जो सभा आयोजित की गई उसके आयोजकगण चर्च संस्थान के ईसाई ही रहे। यह जिला केरल के मुख्यमंत्री का गृहक्षेत्र है। इस जिले के लिए मुख्यमंत्री का विशेष पैकेज होता है। फिर भी इस जिले के लोगों के चित्त में शंति नहीं है। चर्चों के पास लोगों के अशांत भाव को ठीक करने की युक्ति नहीं है। अस्पतालों के पास संसाधन हैं लेकिन चिकित्सा के भाव नहीं है। परिणाम लोग सौ फिसदी बिमार हैं, चित्त अशांत है, मन रोता है, पुस्तैनी धर्म में लौटने की हिम्मत नहीं हो पा रही है। हिन्दू धार्मिक नेताओं की कमी है। विज्ञान के आधार पर धार्मिक व्यवस्था की उपयोगिता के तर्कशास्त्रियों की कमी है। एक सत्य – लोगों में विज्ञान को मानने और समझने की स्वीकार्यता है। अत: केरल में फिर से पौराणिक व्यवस्थाओं को पटरी पर लाना है तो विज्ञान के तर्वâ को आधार मानकर ‘घर वापसी’ का अभियान चलाना होगा।
संघ की भूमिका सराहनीय है। माँ अमृतानंदमयी ने अपने ओचिरा (कोटयम जिला) को बचा कर रखा है। श्रीश्री रविशंकरजी की भी पूरी ताकत लगी है। फिर भी इस प्रदेश को सैंकड़ो संतों की जरुरत है। सच मानें – केरल एक बार उठ खड़ा हुआ तो मेकॉले एडुकेशन को उखाड़ फेंकने की आंधी स्वत: भारत में प्रचंड़ रूप ले लेगा।