कल तक के भारत में प्यासे को पानी पिलाना सबसे पूण्य कर्म था। जहां – जहां पानी की कमी है वहां के लोग ग्रीष्म ऋतु में अपनी कमाई का एक हिस्सा पानी पिलाने में ही लगा देते थे। ग्रीष्म ऋतु शुरु होते ही जिधर भी देखें प्याऊ दिखलाई देता था। पिछले कुछ १०-१५ वर्षों में जब से विदेशी कंपनियां भारत में फिर से आई, पानी जो पुण्य का हिस्सा था अब व्यापार का विषय बन गया है। प्याऊ के क्षेत्र में राजस्थानी सबसे आगे रहते थे। अब राजस्थानी ही पानी बेचने के धंधे में भी आगे आ गए हैं।
इसके बीच पानी को व्यापार बनाने के लिए पानी के साथ बहुत छेड़-छाड़ किया गया है। १) भारत की प्रसिद्ध नदियों को बेच दिया गया तो कहीं गिरवी रख दिया गया है। शुद्ध पानी के कई झूटे प्रमाणिकता तैयार किए गए। सत्य तो यह है कि जल ईश्वर का दिया हुआ शुद्ध तत्व है जो पूरी तरह से विकेन्द्रीत है। इसके लिए कोई एक प्रमाणिकता नहीं खड़ा किया जा सकता। जहां के लोग जिस भूगोल में रहते हैं वहां के लोगों के लिए उसी के अनुरूप जल की आवश्यकता होती है। यही कारण है कि भूमि के जल को सबसे प्रमाणिक माना गया है। लेकिन जब से औद्योगिकरण की बाढ़ आई है, रसायनों को भूमि में डाला जा रहा है जिससे भूमि जल की मूल प्रमाणिकता समाप्त हो गई है और लोगों को जल खरीद कर पीना पड़ रहा है।
जल बेचने वाली कंपनियां पानी को शुद्ध करने के नाम पर कई रसायन का उपयोग कर रही है जिससे जल के सभी धातु और सत्व समाप्त हो जाते हैं और उसमें शुद्धिकरण के नाम पर उपयोग किए जाने वाले रसायन घुल जाते हैं जो कि बहुत ही खतरनाक हैं। पिछले दिनों भारत के कुछ वैज्ञानिकों ने बोतलबंद पानी के अंदर कई खतरनाक रसायन की खोज किए। ये सभी रसायन हमारे शरीर में कैंसर जैसे रोग पैदा करते हैं। इस पराक्रम को किया है – भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर के वायुमंडल निरीक्षण से जुड़े हुए वैज्ञानिकों ने। सेंटर ने कहा है कि पानी की सफाई के दौरान भारत के सभी प्रमुख ब्रांड के बोतलों में कई खतरनाक रसायन मिले हैं। सेंटर का कहना है कि भूमि के अंदर का जल कई बार शुद्ध होता है लेकिन सफाई के दौरान वह बैक्टिरियल फी हो जाता है साथ ही प्रोसेस के दौरान जो रसायन मिलाए जाते हैं, वह पानी की अशुद्धता से ज्यादा खतरनाक है।
बोतलबंद पानी में सामान्य रूप ये ब्रोमेट, क्लोराईड़-क्लोरेट आदि पाये गए जबकि ये रसायन भूमिगत जल में नहीं पाए जाते हैं। अर्थात जल के शुद्धिकरण प्रक्रिया के दौरान उसमें घुले हैं। इसकी खोज के लिए सेंटर ने मुम्बई के खुले बाजार से १८ मुख्य ब्रांड़ के बोतलबंद पानी को खरीदा और पाया कि उन सभी में उपरोक्त रसायन है।
इससे हटकर वैज्ञानिकों के एक दल का कहना है कि जब हम जीरो मिनरल वाटर पीते हैं तब जल हमारे शरीर के मिनरल को अपने में घुला लेता है और मल – मूत्र के माध्यम से बाहर निकाल देता है। जब हम कई वर्षों तक लगातार ऐसा बोतलबंद पानी पीते हैं तब हमारे शरीर में मिनरल की कमी आ जाती है। जिसके कारण कई प्रकार के रोग हो सकते हैं। जैसे कैंसर, मधुमेहए चर्मरोग आदि। अत: किसी भी प्रकार से बोतलबंद पानी या फिर घरों में लगाया जाने वाला मशीन का पानी शरीर के लिए उपयुक्त नहीं है। बल्कि यह पानी शरीर के धातु और तत्वों को बाहर निकालने का कार्य करता है।
पानी बेचने के इस व्यापार पर समय रहते प्रतिबंध नहीं लगाया गया तो आने वाला भारत कई गंभीर बिमारियों से ग्रसित हो सकता है। पानी भगवान का दिया हुआ वरदान है इसे बेचना अपराध है। जबकि आज पानी दूध से भी महंगा बेचा जा रहा है। आज के भारत में दूध अधिकतम ५० रुपये लीटर और बोतलबंद पानी अधिकतम ८० रुपये लीटर बेचा जा रहा है। दूध के भाव जब भी एक या दो रुपये बढ़ाये जाते हैं तब – तब देश में हाहाकार मच जाता है जबकि पानी पर दाम बढ़ने पर कोई कुछ नहीं बोलता।