मेकोले एडुकेशन ने शिक्षा के क्षेत्र में जो तबाही मचा रखा है वह सीमा से पर है. आंकड़े गवाह हैं कि देश में हर घंटे एक छात्र अपना जीवन समाप्त कर रहा है। प्रतिदिन 24 बच्चे आत्महत्या कर रहे हैं. यह अपने आप में कितनी बड़ी तबाही है ? परंतु इसको लेकर कोई गंभीर नहीं है। ना तो परिवार वाले, न स्कूल / कॉलेज वाले, न ही उसके प्रबंधन वाले और अंतत: सरकार के पास हिम्मत ही नहीं है की वह शिक्षा का स्वदेशीकरण कर सके. जब भी छोटे प्रयास हुए हैं वामपंथियों और टाईधारियों की बिरादरी ने इसका भगवाकरण कह कर रुकवाया है.
शिक्षा को लेकर अब तक कोई नीति भी नहीं बनी है। पिछले दिनों मध्य प्रदेश में दसवीं का रिजल्ट आते ही 12 बच्चों ने जीवन समाप्त कर लिया। किसी का दिल नहीं दहला क्या? मीडिया चैनलों के लिए यह बड़ा विषय नहीं था. इसलिए राष्ट्रीय न्यूज भी नहीं बन पायी। सोशल मीडिया पर भी विषय नहीं बना. क्या इसलिए की आत्महत्या बच्चों ने की ? किसानों की आत्महत्या होती तो देखते तमाशा. वामपंथी और टाईधारी दोनों को लगता जैसे उन पर ही बादल टूट कर गिरा है.
अभी भी बच्चों की मौत पर मौन रहने वालों पर तरस ही खाया जा सकता है। सीबीएसई के रिजल्ट आउट होने के साथ ही हर वर्ष इस प्रकार का डरावना समय आता है. नम्बर ज्यादा, परसेंट ज्यादा, नम्बर वन की लालसा रातों की नींद उड़ा देती है। कई बार छात्र नींद न आने वाली दवाइयां लेने के आदि हो जाते हैं। कुछ छात्र पढ़ाई के डर से ही नींद खो देते हैं। कुछ को डरावने सपने आते हैं. नींद में बड़बड़ाने या चौंक कर उठने की समस्या आती है.
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