सरकारी दावे सुनने मे बहुत अच्छे लगते हैं, लेकिन हकीकत में उसे बदलना उतना ही मुश्किल होता है। ऐसा ही एक लक्ष्य मोदीजी ने रखा है – टीबी को खत्म कर देने का, पर मोदी जी यह स्पष्ट नहीं करते हैं की आखिर इसे कैसे समाप्त किया जाएगा ? स्पष्ट है की टीबी रोग में मुख्य भूमिका वायु प्रदूषण का होता है। फिर वायु प्रदूषण के बारे में सरकार क्यों कुछ नहीं बोलती।
प्रस्तुत है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बिन सोचे समझे की गयी घोषणा – नई दिल्ली में आयोजित टीबी उन्मूलन शिखिर सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में कहा कि सरकार ने भारत से 2025 तक तपेदिक रोग यानी टीबी को खत्म करा देना का लक्ष्य तय किया है। उन्होंने कहा कि टीबी के खात्मे के लिए विश्व स्तर पर किए जा रहे प्रयास सफल नहीं हो पा रहे हैं। इसलिए सरकार इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक व्यापक अभियान छेड़ेगी।
मोदी ने कहा कि दुनियाभर में टीबी को खत्म करने के लिए 2030 तक का लक्ष्य तय किया है, जबकि भारत पांच साल पहले ही इससे मुक्ति अगर हकीकत में बदलता है तो भारत के गरीबों व आने वाली पीढ़ियों के लिए किसी वरदान से कम नहीं होगा। भारत में करोड़ों लोग इस जानलेवा रोग से पीड़ित हैं हर साल इनमें से लाखों लोग मौत के शिकार हो जाते हैं। सरकारें टीबी को लेकर लंबे समय से चिंता व्यक्त करती आ रही हैं, लेकिन कभी किसी सरकार ने इस चुनौती के प्रति गंभीरता नहीं दिखाई।
किसी देश में हर साल यदि लाखों लोग अपनी जानें गंवा रहे हैं, यह चिंता का विषय होना चाहिए और सरकार को गंभीर प्रयास करने चाहिए। यह अच्छा है कि प्रधानमंत्री मोदी ने एक लक्ष्य तय कर रणनीतिक योजनाओं के अमल पर जोर दिया है। उन्होंने राज्य सरकारों को भी चेताया है कि इस अभियान को कामयाब बनाने के लिए गंभीरता दिखाएं। यह काफी विचारणीय प्रश्न है कि आजादी के सत्तर साल बाद भी भारत में टीबी जैसी भयानक बीमारी पैर पसार रही है और लाखों लोग मौत के मुंह में जाने को मजबूर हैं।
मोदी ने खुद ने माना है कि टीबी के मामले में कभी भी गंभीरता नहीं दिखाई गई, जबकि टीबी के खात्मे के लिए कई योजनाएं पहले से ही बनी हुई है। मोदी ने कहा कि अब और सर्वश्रेष्ठ योजना बनाकर इसमें निजी क्षेत्र को भी शामिल किया जाएगा। सरकार अभियान को सफल बनाने के लिए प्रशासन के हर स्तर, पंचायत, नगरपालिका, जिला प्रशासन, राज्य सरकार सभी को अपने-अपने स्तर पर कमर कसने को कहेगी और सभी को अपनी पूरी ताकत लगानी होगी। अब तक जो खामियां रही हैं, उसमें प्रशासनिक शिथिलता अधिक रही है। आज भी बड़ी आबादी तक स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं नहीं पहुंच पा रही है।
कई राज्यों ने मुफ्त इलाज, मुफ्त दवा संबंधी लोक लुभावन घोषणाएं अवश्य कर रखी हैं, लेकिन जमीन पर हकीकत कुछ और ही है। सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर नहीं हैं, तो मुफ्त दवा तो एक सपना है। ऐसे हालात में यह सवाल स्वाभाविक है कि टीबी के खात्मे के लक्ष्य को कैसे प्राप्त किया जा सकेगा?
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में टीबी के सबसे अधिक मरीज भारत में है। दुनिया के एक चौथाई से ज्यादा टीबी के मरीज भारत में है जबकि चीन की आबादी भारत से ज्यादा होने के बावजूद वहां टीबी के मरीजों की संख्या हम से एक चौथाई कम है। 2015 में भारत में टीबी से करीब पांच लाख लोगों की मौत हुई थी। इसी साल इस बीमारी के 28 लाख नए मामले सामने आए हैं। डब्ल्यूएचओ के सर्वे और आंकड़े के मुताबिक भारत में टीबी अनुमान से बड़ी ज्यादा बड़ी महामारी है। मामला कुल मिलाकर काफी गंभीर और चौंकाने वाला है। हर साल लाखों लोग टीबी की वजह से मर रहे हैं और लाखों में यह बीमारी और फैल रही है, फिर हम इससे निपटने में अक्षम साबित हो रहे हैं। देखें तो टीबी कोई लाइलाज बीमारी नहीं है, जिस पर काबू न पाया जा सके। पोलिया, चेचक जैसी महामारियों तक का सफाया हो सकता है तो फिर टीबी का आखिर क्यों नहीं? लेकिन टीबी के मामले में सरकार और प्रशासन ने गंभीरता नहीं दिखाई।
यह बीमारी गंदगी और प्रदूषण की वजह से अधिक फैलती है। कई मरीज तो अस्पतालों तक पहुंच जाते हैं, लेकिन बड़ी तादाद उन लोगों की हैं, जो अस्पताल तक ही नहीं पहुंच पाते। फिर कुपोषण भी एक बड़ा अभिशाप है। टीबी के खात्मे का लक्ष्य हासिल करना है तो मोदी के अभियान को व्यापक बनाना होगा। लोगों में जागरूकता पैदा करनी होगी।
प्रश्न उठता है की हम कब तक ऐसी लूभावनी घोषणाओं को सुनते रहेंगे ?
गव्यसिद्ध डॉक्टर्स असोसिएशन द्वारा हम इस विषयपर व्याख्यान ,जन जागृती,रोग के लक्षणऔर चिकित्सा शिबीर का आयोजन की योजना करे तो कुछ लोगो को हम इस रोग से बाहेर आने का विकल्प खडा कर शकते है। आपका मार्गदर्शन और आशीर्वाद बहुमोल कार्य को ऊर्जा दे ।
aisa hi ho.