कम से कम विज्ञान ने इतना तो स्वीकार कर ही लिया है की जीवों का शरीर पाँच महाभूतों से बना है। जिसमें भूमि, जल, अग्नि, वायु और आकाश है। हालांकि यह विषय और आगे तक जाती है। उपरोक्त पाँच में से जल और वायु प्रदूषण के बारे में सरकारें कभी – कभी सोचती है। चिंता जताती है। अभी तक सरकारों की समझ भूमि, अग्नि और वायु की नहीं बनी है। उससे ऊपर के विषय की बात तो कोसों दूर है।
समझते हैं की विज्ञान अभी तक विषय को कहाँ तक सोच पाया है – प्रदूषण जिससे आज कोई भी अछूता नहीं है। मनुष्य पेड़-पौधे, वनस्पतियां और जीव-जंतु सभी इससे प्रभावित हैं। कहीं इंसान इसके चलते जानलेवा बीमारियों का शिकार हो रहा है, कहीं नवजात बच्चे कम वजन के पैदा हो रहे हैं तो कहीं यह बच्चों के दिमाग पर बुरा असर डाल रहा है। कहीं गर्भस्थ शिशुओं के लिए यह जानलेवा साबित हो रहा है, कहीं बच्चों को गुस्सैल बना रहा है।
यह न केवल इंसान के फेफड़े खराब कर रहा है, बल्कि बढ़त वाले बच्चों की मेधा शक्ति को कम कर उनमें स्मृति लोप ला रहा है। यह भिन्न प्रकार के तंत्रिका संबंधी और सांस व दमा रोगों का भी जन्मदाता है। इसका सीधा संबंध न्यूमोनिया से है जो अकेले भारत में हर साल तकरीब 18 लाख बच्चों की जान ले लेता है।
यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार यह बच्चों में चिंता और विकास संबंधी बीमारियों को भी जन्म देता है। प्रदूषण एक साल से कम उम्र के बच्चों के दिमाग पर सबसे ज्यादा बुरा प्रभाव डालता है। इसके अति सूक्ष्म कण बच्चों के खून में प्रवेश करके वहां से दिमाग में पहुंच जाते हैं। उस पर बुरा प्रभाव पड़ने से बच्चों में अलजाइमर और पार्किंसन जैसी भयानक बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
प्रदूषण गर्भ में पल रहे बच्चों पर भी असर डाल रहा है। प्रदूषण की वजह से मां के पेट में भ्रूण का विकास प्रभावित हो रहा है। इसका सबसे ज्यादा असर बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता पर पड़ता है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार 2500 ग्राम से कम वजन वाले नवजात कम वजन में आते हैं। आंकड़ों के अनुसार समूची दुनिया में पैदा होने वाले बच्चों में 15 से 20 फीसद कम वजन वाले होते हैं।
यूरोप के यूनीवर्सिटी द्वारा किए गए शोध के मुताबिक मां बनने जा रही महिला जब इन रसायनों और वायु प्रदूषक तत्वों के संपर्क में आती है तो उसकी कोख में पल रहे शिशु के स्वस्थ मस्तिष्क के विकास में अवरोध पैदा होता है। दुनिया में 19.2 करोड़ बच्चे औसत से कम वजन के हैं। वहीं 56 फीसद लड़के दुनिया में कम वजन वाले हैं। जबकि भारत में कम वजन वाले बच्चों की संख्या 9.7 करोड़ है। यह आंकड़ा दुनिया में सबसे ज्यादा है।
सच तो यह है कि गर्भाशय किसी भी भ्रूण को बाहरी तरह के किसी भी नुकसान से बचाता है। शोध के दौरान महिलाओं की जांच में पाया गया कि उनके शरीर में विषैले रसायन मौजूद हैं जिसका वास्तविक कारण वायु और ध्वनि प्रदूषण है। इतना ही नहीं वायु प्रदूषण का उच्च स्तर किशोरों के बीच आपराधिक व्यवहार के खतरों को बढ़ाने में अहम भूमिका निभा रहा है। वायु प्रदूषण के उच्चतम स्तर के चलते छोटे और विषैले कण विकसित हो मस्तिष्क में प्रवेश कर जाते हैं। मस्तिष्क में सूजन आ जाती है, जिससे फैसले लेने के लिए जिम्मेदार मस्तिष्क के हिस्से को नुकसान पहुंचता है।
एक पत्रिका में प्रकाशित एक नये अनुसंधान की रिपोर्ट के अनुसार व्यायाम से सेहत पर पड़ने वाले प्रभाव वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से बेअसर हो जाते हैं। यह पहला अध्ययन है, जो सेहतमंद लोगों के साथ-साथ पहले से ही दिल और फेफड़ों की बीमारियों से परेशान लोगों में इस तरह के नकारात्मक प्रभाव को सामने रखता है। दुनिया में 1.70 करोड़ बच्चे वायु प्रदूषण की चपेट में हैं। इनमें से 1.20 करोड़ बच्चे दक्षिण एशियाई देशों के हैं जो अंतरराष्ट्रीय वायु प्रदूषण के मानकों से भी छह गुणा अधिक प्रदूषित में रहने को विवश हैं।
आज समूचा उत्तर भारत वायु प्रदूषण की मार झेल रहा है। इसमें दो राय नहीं कि वातावरण खराब करने में औद्योगिक प्रदूषण, कृषि अवशेष जलाना और वाहनों से निकलने वाला धुंआ अहम् भूमिका निभा रहा है। अगर ऐसे ही हालात रहे तो स्थिति और भयावह होगी। इस विभीषिका से जन्मी बीमारियों के निदान की आशा तब और धूमिल हो जाती है जब यह मालूम पड़ता है कि देश में एक हजार आबादी पर एक डॉक्टर भी नहीं है। ऐसा लगता है कि हवा में घुल रहा यह जहर मानव अस्तित्व के विनाश का कारण बनेगा।
यह तो बात रही केवल वायु प्रदूषण का। इससे आगे 4 और प्रदूषण हैं। जिसमें से केवल जल के बारे में सरकारें सोचती हैं। जल प्रदूषण के गंभीर परिणाम की सोचें तो हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। भूमि, अग्नि और आकाश की समझ बनाने के बाद तो पृथ्वी पर जीने का मन ही नहीं करेगा। यह भी एक कारण हो सकता है की अच्छी आत्मायेँ धरती पर जन्म नहीं ले रही हैं।
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